Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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RAMOLAN
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कोई पदार्थ नहीं, विज्ञान ही पदार्थ है परंतु वह स्वप्नमें देखे पदार्थके समान जीवरूपसे दीख पडता हूँ
अध्याय है। तथा प्रत्यय जीव भी कोई पदार्थ नहीं है क्योंकि विज्ञान ज्ञेयस्वरूपसे किसी पदार्थका प्रतिपादन है। Pा नहीं कर सकता अर्थात् यदि प्रत्यय जीव पदार्थ माना जायगा तो वह विज्ञानका ज्ञेयरूपसे विषय है
पडेगा परंतु विज्ञान ज्ञेयरूपसे किसी भी पदार्थका प्रतिपादन कर नहीं सकता इसलिए विज्ञानका विषय है। | न होने के कारण प्रत्ययजीव कोई पदार्थ नहीं । यदि यहांपर यह कहा जाय कि विज्ञान हीको जीव मान । लेना चाहिये सो भी ठीक नहीं है क्योंकि विज्ञान पदार्थ स्वयं न तो जीव है और न अजीव है किन्तु वह एक प्रकाशस्वरूप पदार्थ है, किसी भी शब्दसे उसका निरूपण नहीं हो सकता। यदि कदाचित | यहांपर कहा जाय कि शब्द द्वारा निरूपण करनेपर उसका जीव आदि स्वरूप कुछ आकार तो प्रकट
अनुभवमें आता है। उसका समाधान यह है कि-जिस आकारसे उसका निरूपण होता है वह स्वप्न है। ज्ञानके समान उसका असंत आकार है अर्थात् स्वप्नज्ञानमें जिससमय हाथी घोडे नगर आदि दीख है। पडते हैं उससमय साथमें स्फुटरूपसे उनका आकार भी दीख पडता है परंतु निद्राभंग हो जानेपर उस आकारका पता भी नहीं लगता इसलिये स्वप्न अवस्थामें देखे हुए पदायोंके आकार जिसप्रकार असत् । आकार माने जाते हैं उसीप्रकार जिस किसी भी आकारसे विज्ञानका निरूपण माना जाता है वह आ-६ कार सब असत् आकार है इसलिये नास्ति ज्ञान, अतदाकारत्वात खरविषाणवत्, अर्थात् जीव विषयक ज्ञान नहीं है क्योंकि जीवस्वरूप जो भी विज्ञानका आकार कहा जाता है वह असत् आकार है जिस हूँ प्रकार गधेके सींग । अर्थात् गधेके सौंगका सवस्वरूप कोई भी आकार न रहने के कारण जिसप्रकार उसकी नास्ति है उसीप्रकार जीवस्वरूप ज्ञान पदार्थ भी कोई भी न रहने के कारण उसकी भी नास्ति है