Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha

View full book text
Previous | Next

Page 1209
________________ तरा० मान अध्याय RECADEDORECA VEDHEADries A ६ द्वारा अभेदरूपसे विवक्षित गुणोंका रहना है। अवक्तव्यभंगमें वह अभेद हो नहीं सकता हसीलिये दोनों ६ प्रतियोगी गुणोंका एक साथ कहनेवाला कोई शब्द न रहनेसे उस भंगका अवक्तव्य नाम है । जिन | काल आदिक द्वारा अभेद संबंधका उल्लेख किया गया है वार्तिककार उन काल आदिका वर्णन करते हैं काल आत्मरूपमर्थः संबंध उपकारो गुणिदेशः संसर्गः शब्दः॥२०॥ ___ काल आत्मरूप अर्थ संबंध उपकार गुणिदेश संसर्ग और शब्द ये आठ पदार्थ अभेद बतलाने वाले हैं। जो गुण जिसकारणसे आपसमें विरुद्ध हैं उनका एक कालमें किसी भी पदार्थमें रहना नहीं। || दीख पडता इसलिये अभेदरूपसे किसी एक पदार्थमें न रहनेके कारण उनको कहनेवाला कोई एक शब्द ॥ नहीं हो सकता। इसरीतिसे आपसमें जुदे जुदे, असंसर्गस्वरूप और अनेकांतस्वरूप अस्तित्व नास्तित्व ll एक आत्मामें नहीं रह सकते जिससे एक कालमें आत्मा अस्तित्व नास्तित्व दोनों स्वरूप कहा जाय | है| इसप्रकार यह कालकृत अभेदका निषेध है। एकांत पक्षमें समस्त गुणोंका आपसमें स्वरूप भिन्न भिन्न है इसलिये वे आपसमें एकमएक नहीं हो सकते तथा जब वे आपसमें एकमएक नहीं हो सकते तब वे |एक आत्मामें एक साथ अभेदरूपसे कहे भी नहीं जा सकते सार यह है कि यदि गुण आपसमें एकमएक | रूपसे परिणमन करें तब वे किसी जगहमें अभेदरूपसे कहे जा सकते हैं परंतु वैसा तो है नहीं इसलिये उनका अभेद नहीं कहा जा सकता। यह आत्मरूपकृत अभेदका निषेध है। एकांत पक्षमें अस्तित्व नास्तित्व धर्मों का आपसमें विरोध है इसलिये वे एकसाथ एक द्रव्यको आधार बनाकर नहीं रह सकते। | तथा जब उनका आधार अभिन्न नहीं है तब उनका आपसमें अभेदसंबंध और एकसाथ रहना भी नहीं हो सकता एवं अस्तित्व नास्तित्वका आपसमें अभेद न रहनेपर उनको एकसाथ कहनेवाला कोई शब्द RDAMADAM-15-DIY ARDARSHEEMA २१९ 5

Loading...

Page Navigation
1 ... 1207 1208 1209 1210 1211 1212 1213 1214 1215 1216 1217 1218 1219 1220 1221 1222 1223 1224 1225 1226 1227 1228 1229 1230 1231 1232 1233 1234 1235 1236 1237 1238 1239 1240 1241 1242 1243 1244 1245 1246 1247 1248 1249 1250 1251 1252 1253 1254 1255 1256 1257 1258 1259