Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अध्याय
भाषा
/ स्थिति है यह संबंध है इसरीतिसे भवनवासी देवोंकी जघन्य स्थिति दश हजार वर्षकी है यह इस सूत्रका बरा अर्थ है ॥३७॥ सूत्रकार अब व्यंतर देवोंकी जघन्य स्थितिका वर्णन करते हैं
व्यंतराणां च ॥३८॥
व्यंतर देवोंकी भी जघन्य स्थिति दश हजार वर्षकी है। यहां पर भी च शब्दका अर्थ समुच्चय है और “जघन्य स्थिति दश हजार वर्षकी है" इप्स | अर्थका वह समुच्चय करता है । इसलिए व्यंतरोंकी जघन्य स्थिति दश हजार वर्षकी है, यह सूत्रका स्पष्ट | तात्पर्य है । शंका
परा व्यंतराणां प्रागभिधातव्या इति चेन्न, लाघवार्थत्वात् ॥१॥ जिसप्रकार अन्य अन्य देवोंकी पहिले उत्कृष्ट स्थिति और पीछे जघन्य स्थिति कही है इसीप्रकार || व्यंतरोंकी भी पहिले उत्कृष्ट और पीछे जधन्य कहनी चाहिये, इसलिए उत्कृष्ट स्थिति न कहकर पहिले 5 जघन्य स्थिति कहना अयुक्त है ? सो ठीक नहीं । पहिले जघन्य स्थितिके कहनेमें 'दशवर्षसहस्राणि, 8 परा स्थितिः' इन अक्षरोंका लाघव है। क्योंकि बराबर उनकी अनुवृत्ति ऊपरसे आरही है। यदि पहिले ||
उत्कृष्ट स्थिति और पीछे जघन्य स्थिति कही जाती तो उत्कृष्ट स्थिति कहनेवाले सूत्रके वीचमें व्यवधान पंडजानेके कारण दशवर्षसहस्राणि आदि शब्दोंकी अनुवृत्ति आती नहीं इसलिए यहां 'व्यंतरा-
1 Pणामपरा दशवर्षसहस्राणि' इतना बडा सूत्र बनाना पडता जिससे अनेक अधिक अक्षरोंके कहनेसे महा
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