Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha

View full book text
Previous | Next

Page 1181
________________ H भाषा | होता है किंतु जिस समय काल आदिसे अभेद विवक्षा है वे सब धर्म एक वस्तु स्वरूप ही माने जाते हैं स्था उस समय अनेक धर्मों का एक स्वरूप हो जानेके कारण एक कोई स्वरूप वाचक शब्द उस अनेक धर्मा | त्मक वस्तुका प्रतिपादन कर सकता है इसलिए वहांपर योगपद्य है अर्थात् किसी एकस्वरूपवाचक शब्द ११५५द्वारा तादाम्यसंबंध होनेसे एक समयमें ही उस अनेक धर्मस्वरूप वस्तुका प्रतिपादन हो जाता है। तत्र यदा योगपद्यं तदा सकलादेशः॥ १६॥ जिससमय अनेक धर्म स्वरूप वस्तुका प्रतिपादन करते समय योगपद्य है अर्थात् अनेक धर्मस्वरूप वस्तुका एक समयमें एक साथ प्रतिपादन किया जाता है उस समय सकलादेश कहा जाता है और वही प्रमाणका विषय है । क्योंकि 'सकलादेशः प्रमाणाधीनः' अर्थात् सकलादेश प्रमाण ज्ञानका विषय कहा। जाता है, ऐसा आगमवचन है । तथा ___ यदा तु क्रमस्तदा विकलादेशः॥ १७॥ ' जिससमय क्रम रहता है अर्थात् अनेक धर्मस्वरूप वस्तुके धर्मीका क्रमसे प्रतिपादन रहता है वहां विकलादेश कहा जाता है एवं यही विकलादेश नयका विषय है। क्योंकि 'विकलादेशो नयाधीनः'। अर्थात् विकलादेश नयज्ञानका विषय कहा जाता है, ऐसा आगमका वचन है। विशेष-सकलादेशः प्रमाणाधीनः, विकलादेशो नयाधीनः, यह जो सकलादेश और विकलादेश के पारिभाषिक अर्थ किए गये हैं उनका यदि यहॉपर कोई ऐसा अर्थ करे कि-'अनेकधर्मात्मकवस्तुविषयकबोधजनकवाक्यत्वं' अर्थात् आस्तित्व आदि अनेक धर्मस्वरूप वस्तुकाजनानेवाला वाक्य सकलादेश है, तथा 'एकधर्मात्मकविषयबोधजनकवाक्यत्वं विकलादेशत्वं' अर्थात् एक धर्मस्वरूप वस्तुको ११५५ DONESIAनन्यसलललललललललल उनकायमR URS - -

Loading...

Page Navigation
1 ... 1179 1180 1181 1182 1183 1184 1185 1186 1187 1188 1189 1190 1191 1192 1193 1194 1195 1196 1197 1198 1199 1200 1201 1202 1203 1204 1205 1206 1207 1208 1209 1210 1211 1212 1213 1214 1215 1216 1217 1218 1219 1220 1221 1222 1223 1224 1225 1226 1227 1228 1229 1230 1231 1232 1233 1234 1235 1236 1237 1238 1239 1240 1241 1242 1243 1244 1245 1246 1247 1248 1249 1250 1251 1252 1253 1254 1255 1256 1257 1258 1259