Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
- ARNI
नास्तित्वकी स्वात्मा नास्तित्वस्वरूपसे है उसीप्रकार परका अभाव भी स्वसत्ता परिणतिकी अपेक्षा ही है किंतु स्वसत्ता परिणतिकी अपेक्षाके न होनेपर परका अभाव सिद्ध नहीं हो सकता हसरीतिसे स्यादस्ति और स्यान्नास्ति ये दोनों भंग स्वतः सिद्ध हैं। यदि स्यादस्ति और स्यान्नास्ति दोनों भंग न माने हा जॉयगे तो वस्तुका अभाव ही हो जायगा क्योंकि यह नियम है कि यदि अभावको भावनिरपेक्ष माना , जायगा तो उससे भिन्न अन्वय अर्थात् भावकी उपलब्धि तो होगी नहीं फिर वह अभाव अत्यन्त शून्य ही वस्तुका ही प्रतिपादन करेगा तथा यदि भावको भी अभावनिरपेक्ष मानाजायगा तो उससे भिन्न व्यतिरेक अर्थात् अभाव पदार्थकी उपलब्धि तो होगी नहीं फिर वह भाव समस्त वस्तुस्वरूपका प्रतिपादन करेगा। तथा सर्वथा सत्तारूपसे वा सर्वाभावरूपसे कोई भी वस्तु नहीं हो सकती एवं सर्वस्वरूप वा सर्वाभावस्वरूप कोई भी वस्तु नहीं दीख पडती । यदि सर्वात्मक वस्तुको माना जायगा तो वह वस्तु ही नहीं हो सकती क्योंकि उस प्रकारकी वस्तुका होना असंभव है। यदि सर्वाभावस्वरूप मानी जायगी तो वह आकाशके फूलके समान असंभवित कही जायगी।
परंतु हां! यदि वस्तुत्वको सर्वात्मक माना जायगा तो जिसप्रकार श्रावणवधर्म शब्दमात्रमें रहने के कारण असाधारण है इसलिए कहा जा सकता है उसीप्रकार वस्तुत्वधर्म भी वस्तुमात्रमें रहनेके कारण असाधारण है इसलिए वह भी कहा जा सकता है इसरीतिसे यह बात सिद्ध हो चुकी कि न सर्वथा सत्तात्मक पदार्थ है और न सर्वथा अभावात्मक पदार्थ है किंतु कथंचित् अस्तित्वस्वरूप और कथंचित् नास्तित्वस्वरूप है इसलिए स्यादस्ति और स्थानास्ति ये दोनों भंग निर्वाध रूपसे सिद्ध है। और भी
११७२ यह बात है कि