Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अध्याय
* FARRORNERBALASASI-
है उसप्रकार स्थिति भी अनेक प्रकारकी है क्योंकि स्थिति जिसको कि नौव्य कहते हैं उपपाद और विनाशकी आधार है। यदि स्थितिको कोई पदार्थ न माना जायगा तो जिसप्रकार बांझके पुत्रका होना संसारमें असंभव है उसीप्रकार स्थितिके अभावमें उत्पाद और व्ययका होना भी असंभव है एवं स्थिति के
अभावमें उपपाद और व्ययके अभाव होनेपर समस्त पदार्थों का ही अभाव हो जायगा कोई भी पदार्थ की |सिद्ध न हो सकेगा। तथा
यदि स्थिति पदार्थ नहीं माना जायगा तो 'घट उत्पद्यते' घट उत्पन्न होता है जिससमय यही वर्त. मान कालका प्रयोग है उससमय घट तयार नहीं है तथा यहांपर पहिले वा पीछे नयार होने योग्य भावका कथन किया गया है इसलिए घटका अभाव ही कहना पडेगा अर्थात् 'घट उत्पन्न होता है जिस समय यह कहा जाता है उससमय घट तो विद्यमान है नहीं, यदि स्थिति पदार्थ माना ही न जायगा। तो घटका अभाव ही हो जायगा। तथा यदि उत्पचिके अनंतर विनाश माना जायगा अर्थात् 'जो उत्पत्ति
है वही विनाश है' इस सिद्धांतके अनुसार उत्पति और विनाशका एक काल नहीं माना जायगा तो + सतस्वरूप अवस्थाका कहनेवाला कोई शब्द तो होगा नहीं क्योंकि उत्पादमें भी अभाव कहा जायगा है और विनाशमें भी अभाव कहा जायगा इसरीतिसे भाव पदार्थ हीन बन सकेगा क्योंकि पदार्थको | उत्पाद व्यय और धौव्यस्वरूप माना है एवं जब पदार्थ ही सिद्ध न हो सकेगा तब पदार्थों के आधीन जो संसारका व्यवहार है वह भी रुक जायगा तथा और भी यह बात है कि
१-स्थिति भी उत्पाद व्ययके समान एकपक्षीय है वह पर्याय उत्पाद व्ययके साथ ही होता है तीनो पर्यायें सवगुणकी हैं इसलिये जब उत्पाद और व्ययमें भेद है स्थितिमें भी अवश्य मानना पडेगा।
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