Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अध्याय
ही कही गई है इसलिये क्या उनकी उत्कृष्ट ही स्थिति होती है जघन्य नहीं होती ? इस शंकाके उत्तर में सूत्रकार उनकी जघन्य स्थितिका वर्णन करते हैं
अपरा पल्योपममधिकम् ॥ ३३॥ सूत्रार्थ-जघन्य अर्थात् कमसे कम आयु सौधर्म ऐशान स्वर्गमें एक पल्पसे कुछ अधिक है।
सूत्रमें जो अपरा शब्द है उसका अर्थ जघन्य है स्थिति शब्दकी ऊपरके सूत्रसे अनुवृत्ति आरही है। पल्योपमका प्रमाण पहिले कहा जा चुका है। यह यहाँपर जघन्य स्थिति देवों की है उनमें भी सौधर्म में है और ऐशान स्वर्गोंके देवोंकी समझनी चाहिये । शंका-सौधर्म और ऐशान स्वर्गोंके देवोंकी यह जघन्य स्थिति है इस बातके जाननमें क्या प्रमाण है ? उचर- ..
पारिशेण्यात्सौधर्मेशानयोरपरा स्थितिः॥१॥ भवनवासी देवोंकी जघन्य स्थितिका उल्लेख आगे किया जायगा । परत परतः पूर्वापूर्वी इत्यादि सूत्रसे सानत्कुमार माहेंद्र आदिकी स्थितिका वर्णन किया गया है। सौधर्म और ऐशान स्वर्गकी है स्थितिका वर्णन कहीं नहीं दीख पडता इस लिये पारिशेष्य बलते अपरा पल्यापममित्यादि सूत्रसे सौधर्म है
और ऐशान स्वर्गाके देवोंकी स्थितिका ही विधान है। इसरीतिस सौधर्म और ऐशान स्वों के देवोंकी - जघन्य स्थिति कुछ अधिक एक पल्य प्रमाण है यह बात सिद्ध हो चुकी ॥ ३३॥ सानत्कुमार माहेंद्र आदि स्वर्गनिवासी देवोंकी जघन्य स्थितिका अब सूत्रकार वर्णन करते हैं
परतः परतः पूर्वा पूर्वानंतरा॥३३॥ पहिले पहिले युगलकी उत्कृष्ट आयु व्यवधानरहित अगले अगले युगलमें जघन्य है । अर्थात्
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