Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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चम्पाय
|| समान और किंचित् घाटि तीन सागर प्रमाण है अर्थात् अभ्यंतर सभाओं में रहनेवाले देवोंकी देवि- ।। l योंकी आयु कुछ अधिक तीन सागर प्रमाण है। मध्यम सभामें रहनेवाले देवोंकी देवियोंकी आयु तीन सागर प्रमाण है और वाह्य सभाओंके देवोंकी देवियोंकी आयु कुछ कम तीन सागर प्रमाण है।
माहेंद्र देवका पुष्पक नामक विमानका-रचनेवाला आभियोग्य जातिका पुष्पक नामका देव है। । उसकी आयु कुछ अधिक साढ तीन सागर प्रमाण है। इसके अनुयायी सौ देव हैं और वे कुछ अधिक
दो सागर प्रमाण आयुके धारक हैं। इसप्रकार यह सानत्कुमार और माहेंद्र स्वाँका वर्णन कर दिया या गया अब ब्रह्मलोक और ब्रह्मोचर स्वर्गोंका वर्णन किया जाता है
- सानकमार स्वर्गके अंतिम चक्र नामक इंद्रक विमानके ऊपर लाखोंयोजनके वाद ब्रह्मलोक और Sil ब्रह्मोचर नामक दो स्वर्ग हैं ! उनमें महलों के समान अरिष्ट १ देवसमित २ ब्रह्म ३ और ब्रह्मोचर ये |चार पटल हैं। अरिष्ट नामक इंद्रक विमानकी चारो दिशाओंमें चार विमानों की श्रेणियां हैं। प्रत्येक
ओणमें चौवीस चौवीस श्रेणिबद्ध विमान हैं तथा विदिशाओंमें पुष्पप्रकीर्णक विमान हैं। अरिष्ट नामके M&l इंद्रक विमानकी चारो दिशाओं में जितने जितने श्रेणिबद्ध विमान कहे गये हैं उनसे आगेके ब्रह्मांतर
इंद्रक विमान पर्यंत विमानोंमें एक एक श्रेणिबद्ध विमानकी कमी होती चली गई है अर्थात्-अरिष्ट नामक विमानकी चारो दिशाओंमें चौवीस चौवीस श्रोणिबद्ध विमान हैं। देवसमित इंद्रक विमानकी चारो दिशाओंमें तेईस तेईस श्रेणिबद्ध विमान हैं । ब्रह्म नामक इंद्रक विमानकी चारो दिशाओंमें वाईस वाईम श्रेणिबद्ध विमान हैं और ब्रह्मोचर नामक इंद्रक विमानकी चारो दिशाओंमें इकोस इक्कीस | श्रेणिबद्ध विमान हैं। तथा इन प्रस्तारोंके आपसमें अंतर भी लाखों योजनोंके हैं अर्थात् अरिष्ट नामक
ATESUCCEPLIEURESHARECHEREKARACH
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