Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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०रा०
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धारण कर मोक्ष जाते हैं तब तो सर्वार्थसिद्धि विमानवासी देवोंकी भादो मनुष्य भव धारंणके वाद मोक्ष माननी पडेगी क्योंकि अहमिंद्र और सम्यग्दृष्टि वे भी हैं परन्तु उन्हें शास्रमें एकचरम अर्थात् एक भव धारण कर मोक्ष जानेवाला माना है इसलिये प्रकार शब्दका जो अहमिंद्र और सम्यग्दृष्टि अर्थ माना है वह अयुक्त है ? सो ठीक नहीं । सर्वार्थसिद्धि विमानवासी देव परमोत्कृष्ट हैं। जहांपर सर्व प्रयोजनोंकी सिद्धि हो वह सर्वार्थसिद्धि है यह सर्वार्थसिद्धि शब्दका अन्वर्थरूपसे अभिप्राय है। सवार्थसिद्धि विमान| वासी देवोंके किसी प्रयोजनीय कार्यका संपादन करनेवाला कर्म वाकी नहीं रहता जिससे वे दो मनुष्य
|भव धारण कर मोक्ष जांय इसलिये मोक्षार्थ वे एक ही मनुष्य भव धारण करते हैं और वहाँसे मोक्ष चले | IM जाते हैं अतः उनके एक चरमपना ही है द्विचरमपना नहीं।।
द्विचरमत्वं मनुष्यदेहवयापेक्षं ॥२॥ चरम शब्दका अर्थ पहिले अर्थात् औपपादिकचरमेयादि सूत्र कह दिया गया है। जिनके दो। चरम देह हों वे द्विचरम कहे जाते हैं और विचरमत्वका अर्थ द्विचरमपना है। यह द्विचरमपना यहांपर। मनुष्यभवके दो शरीरोंकी अपेक्षा है अर्थात जिसका सम्यक्त्व अप्रतिपाती है अर्थात् जो क्षायिक सम्प| क्त्वी है वह विजय आदि विमानोंसे च्युत होकर मनुष्य होता है। मनुष्य भवमें संयमका आराधन कर | पुनः विजयादि विमानोंमें उत्पन्न होता है। वहांसे च्युत होकर पुनः मनुष्य होता है और वहां से फिर | मोक्ष चला जाता है किंतु भव सामान्यकी अपेक्षा यहांपर द्विचरमपना नहीं है अन्यथा दो मनुष्य भव
और एक देवभव इसप्रकार तीन चरमदेहपना सिद्ध होगा दोचरमदेहपना सिद्ध न हो सकेगा। शंकामनुष्यदेहको ही चरमपना क्यों ? देवदेहको क्यों चरमपना नहीं माना गया ? उत्तर
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