Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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श्रेणिबद्ध विमानोंमें जाकर उत्पन्न होते हैं। मध्यम तेजो लेश्याके अंशरूप परिणामसे सौधर्म और ऐशांन स्वर्गों के दुसरे चंद्र नामक इंद्रक विमान और उसके श्रेणिबद्ध विमानोंको आदि लेकर सानत्कुमार और | माहेंद्र स्वर्गके वलभद्र नामक छठे इंद्रक-विमान और उसके श्रेणिबद्ध विमान पर्यंतके विमानोंमें गमन
करते हैं। ___ . उत्कृष्ट कृष्णलेश्याके अंशरूप परिणामसे जीव सातवें नरकके अप्रतिष्ठान पाथडेतक जाते हैं। जघन्य कृष्णलेश्याके अंशरूप परिणामसे पांचवें नरकके तमिश्र नामकके इंद्रक विलमें जाते हैं। मध्यम कृष्णलेश्याके अंशरूप परिणामसे छठे नरकके हिम पाथडेको आदि लेकर महारौरव पाथडेतक जाते हैं। उत्कृष्ट नील लेश्याके अंशरूप परिणामसे पांचवे नरकके मध्य इंद्रकमें जाकर उत्पन्न होते हैं। जघन्य नील लेश्याके अंशरूप परिणामसे बालुका नामकी तीसरी पृथ्वीके तप्त नामक इंद्रकमे जाकर- 'उत्पन्न होते हैं। मध्यम नील लेश्याके अंशरूप परिणामसे बालुका पृथिवीके त्रस्त इंद्रकको आदि लेकर झप पर्यंतके इंद्रकोंमें जाकर उत्पन्न होते हैं। उत्कृष्ट कपोत लेश्याके अंशरूप परिणामसे बालुका प्रभाके संप्रज्वलित नामक इंद्रक विलेमें उत्पन्न होते हैं।जघन्य कपोतलेश्याके अंशरूप परिणामसे रत्नप्रभा नरकके सीमंतक विलेमें जाकर उत्पन्न होते हैं। मध्यम पोटलेशाके अंशरूप परिणामसे पहिले नरकके तीसरे रोरुक विलको आदि लेकर तीसरे नरकके संप्रज्वलित'नामक अंतिम विलेतक जाकर उत्पन्न होते हैं। मध्यम कृष्ण नील कापोत और तेज लेश्याओंके अंशरूप परिणामसे भवनवासी व्यंतर ज्योतिषी पृथ्वी काय जलकाय और वनस्पति कायोंमें जाकर उत्पन्न होते हैं। मध्यम कृष्ण नील कपोत लेश्याके अंशरूप परिणामसे आग्नकायिक और वायुकायिकोंमें उत्पन्न होते हैं। तथा देव और नारकी अपनी अपनी