Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अध्याय
ANDIGARE
स्वर्गों में रहनेवाले देवों के तेज और पद्म दो मिश्ररूप लेश्या होती हैं। ब्रह्म ब्रह्मोचर लांतव और कापिष्ठ स्वर्गों में रहनेवाले देव पद्म लेश्याके धारक हैं। शुक्र महाशुक शतार और सहस्रार स्वर्गनिवासी देव मिश्ररूप पद्म और शुक्ल लेश्याके घारक हैं। आनत स्वर्गको आदि लेकर सर्वार्थसिद्धि पर्यनके देवोंके शुक्ललेश्या होती है उनमें भी सर्वार्थसिद्धि विमानके निवासी देव परम शुक्ललेश्याके धारक हैं। लेशा-ई ओके निमित्त कारणोंकी व्यवस्था इसप्रकार है
द्रव्य और भावके भेदसे लेश्या दो प्रकारकी ई यह बात ऊपर कही जाचुकी है उनमें द्रव्यश्यामें नाम मोदय कारण है अर्थात् नाम कर्मके उदयसे द्रव्यलेश्याकी उत्पचि होती है तथा भाव लेश्याकी उत्पत्ति कषायोंके उदय, क्षयोपशम, उपशम और क्षयके आधीन है । लेश्याओंकी संख्याकी व्यवस्था । इसप्रकार है
कृष्ण नील और कापोत तीनों लेश्याओंमें प्रत्येक लेश्या द्रव्य प्रमाणसे अनंतानंत है अनंतानंत उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल व्यतीत हो जाय तो भी उनका विनाश नहीं होता इसलिये कालप्ते भी अनंतानंत है तथा क्षेत्र प्रमाणकरि अनंतानंत लोक प्रमाण है। तेजोलेश्या द्रव्यप्रमाणसे ज्योतिष्क देवोके परिमाणसे कुछ आधिक परिमाणवाली है । पद्म लेश्या द्रव्यप्रमाणसे संज्ञा पंचेंद्रिय तिर्यंचोंके प्रमाणसे संख्यातभाग प्रमाण है । तथा शुक्ल लेश्या पल्यके असंख्यातभाग प्रमाण है। क्षेत्रकी अपेक्षा है लेण्याओंकी व्यवस्था इसप्रकार है
__कृष्ण नील और कापोत लेश्याओंके धारक जीवोंमें प्रत्येक जीवका निवास स्वस्थान समुदात १११० उपपादों द्वारा सर्व लोकमें हैं। तेज और पद्म लेश्यावालों से प्रत्येक जीवका निवास स्वस्थान समुद्घात
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