Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अध्याय
२०११
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सानत्कुमार इंद्रकी अभ्यंतर सभाका नाम समिता है उसमें आठ हजार देव हैं और उनकी कुछ | अधिक साढे तीन सागरको आयु है। मध्यम सभाका नाम चंद्रा है। उसमें दश हजार देव हैं और उनकी भी कुछ अधिक साढे तीन सागरकी आयु है । तथा वाह्य सभाका नाम जातु है। उसमें रहनेवाले वारह हजार देव हैं और उनकी साढे तीन सागरकी आय है। ____ अभ्यंतर सभाके देवोंमें प्रत्येक देवकी सात सात सौ देवियां हैं और उनकी पांच पांच पल्यकी आयु है। मध्यम सभाके प्रत्येक देवकी छह छह सौ देवियां हैं और उनकी आयु भी पांच पांच पल्यकी है एवं वाह्य सभाके प्रत्येक देवकी पांच पांचौ देवियां हैं और उनकी आयु भी पांच पांच पल्यकी है। || तथा इनमें हर एक देवी अपनी अपनी विक्रियासे उतने ही प्रमाण रूप धारण
क्रयासे उतने ही प्रमाण रूप धारण करने में समर्थ है अर्थात अभ्यंतर सभाके देवोंकी प्रत्येक देवी अपनी विक्रियासे सातसौ २ देवियोंका रूप धारण कर सकती है। || मध्यम सभाके देवोंकी प्रत्येक देवी छहसौ छहसौ और वाह्य सभाके देवोंकी प्रत्येक देवी पांचसो पांचौ ||
दवियोंके रूप धारण कर सकती है । सानत्कुमार इंद्रकी सेनाके महत्चर सौधर्म इंद्रके महचरोंके समान है। हैं और वे साढे तीन सागर प्रमाण आयुके धारक हैं। __ ऊपरके समान यहांपर पदातियोंकी सात कक्षायें हैं। पहिली कक्षामें बहचर हजार देव हैं दूसरीमें | उससे दूने देव हैं। तीसरीमें उससे दूने इसप्रकार सातवीं कक्षा तक देवोंकी दूनी दुनी संख्या समझ लेनी | | चाहिये । इसीप्रकार घोडे आदि अन्य सेनाओंकी भी सात सात कक्षा जान लेनी चाहिये।
सेनाके महचरों में प्रत्येककी तीन तीनसौ देवियां हैं और उनकी पांच पल्यकी आयु है। आत्मरक्ष २०६१ देवोंमें एक एकके सौ सौ देवियां हैं और उनकी भी पांच पांच पल्यकी आयु है। विमानके नियोगी