Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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ज
मपाप
है| दिशाके सुभद्र नामके विमानमें वरुण नामका लोकपाल है। पांच पल्पकी आयुका धारक है। उसकी | अभ्यंतर सभामें अस्सी देव हैं। मध्यम सभा सातसै देव हैं और वाह्य सभामें आठसै देव हैं। पूर्वदिशाके | अमित नामके विमानमें वैश्रवण नामका लोकपाल है। पोने पांच पल्यकी आयुका धारक है । उसकी या अभ्यंतर सभामें सचर देव हैं। मध्यम सभामें छहसौ देव हैं और वाह्य सभामें सातसौ देव हैं।
पेशान इंद्रका बालकके समान पुष्पक नामका आभियोग्य देव है वह अपनी विक्रियासे जम्बू-15 | दीपके समान पुष्पक नामका वाहन वा विमान बनाने में समर्थ है। ऐशान इंद्रका शेष वर्णन सौधर्म इंद्रके || | समान समझ लेना चाहिये इसप्रकार उत्तरदिशाके श्रेणिबद्ध और पुष्पप्रकीर्णक विमानोंके स्वामी ऐशान || है। इन्द्रका और ऐशान स्वर्गका वर्णन कर दिया गया। अब सानत्कुमार और माहेन्द्रका वर्णन किया जाता है
सौधर्म स्वर्गके अंतिम प्रभा नामके इंद्रक विमानके ऊपर हजारों योजनोंके वाद सानत्कुमार और || माहेंद्र नामके स्वर्ग हैं। उनमें महलोंके समान अंजन १ वनमाल २ नाग ३ गरुड ४ लांगल ५ वलभद्र || और चक्र ७ नामके सात विमानोंके पटल हैं। इनमें अंजन विमानकी चारो दिशाओं में चार विमा- |
नोंकी श्रेणियां हैं अर्थात् श्रेणिबद्ध विमान हैं एवं विदिशाओंमें पुष्पप्रकीर्णक विमान हैं। अंजन विमा-13 || नकी चारो दिशाओंकी श्रेणियोंमें प्रत्येकमें इकतीस इकतीस विमान हैं अर्थात् श्रेणिबद्ध विमान प्रत्येक || है| दिशामें इकतीस इकतीस हैं। आगेके चक्र विमान पर्यंत एक एक कम होता चला गया है अर्थात्- | __अंजन विमानकी चारो दिशाओं में इकतीस इकतीस श्रेणिबद्ध विमान, हैं। वनमाल विमानकी | चारों दिशाओंमें तीस-तीस श्रेणिबद्ध विमान हैं। नाग विमानकी चारो दिशाओं में उनतीस उनतीस
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ननायरन
जवावर