Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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समास करना ही ठीक होता क्योंकि समाससे 'सु' अक्षर नहीं कहना पडता अतएव महान् लाधव
वचत) होता। ____ अनुदिशका अर्थ यहां प्रतिदिश है अर्थात् हर एक दिशामें हो वह अनुदिश कहा जाता है शंका-दिश् शब्द हलंत है इसलिए दिशं दिशमनु इति अनुदिक्' ऐसा सिद्ध होगा, फिर अनुदिशंद ऐसा क्यों प्रयोग किया गया ? समाधान-व्याकरणशास्त्रमें 'शरदादेः।।२।१३६ । इस सूत्रसे है शरदादि गणमें पठित शरद आदि शब्दोंसे 'ट' प्रत्यय होता है, ऐसा विधान है । दिश् शब्दका भी है
शरदादिगणमें पाठ है इसलिए उससे भी 'ट' प्रत्यय करनेपर एवं टकार अनुबंध और रिश् शब्दका । शकार अकारमें मिलजानेपर अनुदिश शब्दकी सिद्धि होजाती है । अथवा दिशा अर्थ का वाचक
आकारांत भी दिशा शब्द माना गया है। आकारांत दिशा शब्द का अनु' अव्ययके साथ समास होने पर भी अनुदिश शब्दकी सिद्धि हो सक्ती है।
उपर्युपरीत्यनेन द्वयोईयोरभिसंबंधः॥६॥ पदार्थों की व्यवस्था आगमकी अपेक्षासे मानी गई है इसलिए शास्रके अनुसार 'उपर्युपरिं' इस वचनसे दो दो का संबंध समझ लेना चाहिये। और वह इस प्रकार है
सबसे पहिले सौधर्म और ऐशान स्वर्गोंका जोडा है । उसके ऊपर सानत्कुमार माहेंद्र, उनके ऊपर ब्रह्मलोक और ब्रह्मोचर, उनके ऊपर लांतव और कापिष्ठ, उनके ऊपर शुक्र और महाशुक्र, उनके ऊपर
१-शरदादेः । ४।२।१३६ । अस्माटो भवति हे । शरदः समीपमुपशरदं । प्रतिशरदं । उपमनस । अनुदिच । शब्दार्णव. चंद्रिका पृष्ठसंख्या १४२।
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