Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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उपर्युक्त क्षेत्रों में रहनेवाले मनुष्यों में सबकी आयु वरावर है कि कुछ विशेष है ? सूत्रकार इस विषयका स्पष्टीकरण करते हैं
एकद्वित्रिपल्योपमस्थितयो हैमवत कहाविर्षकदैव कुरवका ॥ २६ ॥ हिमवान क्षेत्र के हरिक्षेत्र के और देवकुरु भोग भूमिके मनुष्य और तिर्यच क्रमसे एक दो तीन पल्य की आयुवाले होते हैं ।
हैमवतादिभ्यो भवार्थे वुञ् मनुष्यप्रतिपत्त्यर्थः ॥ १ ॥
हैमवतक क्षेत्र में हों वे हैमवतक हैं। जो हरिवर्षमें रहें वे हारिवर्षक है और जो देवकुरुमें रहें वे "देवकुश्वक हैं इसप्रकार मनुष्योंकी प्रतिपत्ति के लिये हैमवत आदि शब्दोंसे 'होने' अर्थ में 'वुञ्' प्रत्ययका विधान किया गया है |
एकादीनां हैमवतकादिभिर्यथासंख्यं संबंधः ॥ २ ॥
हैमवतक आदि भी तीन हैं और एक आदि भी तीन हैं इसलिये एक आदिका हैमवतक आदि के साथ क्रमसे संबंध है। उससे हैमवतक क्षेत्र में रहनेवाले हैमवतक मनुष्यों की आयु एक पल्पकी है । हरिवर्षक्षेत्र में रहनेवाले हारित्रर्षकोंकी आयु दो पल्यकी है एवं देवकुरुक्षेत्र में रहनेवाले दैवकुरवकों की आयु तीन पल्की है। यह स्पष्ट अर्थ है । .
ढाई द्वीप संबंधी पांचों हैमवत क्षेत्रों में सर्वदा सुषमा दुःषमा काल अवस्थित रहता है । इन पांचों ही हैमवत क्षेत्रों में रहनेवाले मनुष्य एक पल्यकी आयुवाले होते हैं। दो हजार धनुष ऊंचे, चतुर्थ भक्ताहार अर्थात् एक दिनका अंतर देकर भोजन करनेवाले और नील कमलके समान वर्णवाले हैं। पांचो हरि
अध्याग
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