Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अध्याय
ASABAINGARALSU HAADA
हेतु हैं। उनसे कल्पातीत देवोंमें कामवेदनाकी सचा नहीं सिद्ध हो सकती इसलिये उनमें कामवेदनाका अभाव सुनिश्चितं और अबाधित है ॥९॥
सामान्यरूपसे देवों के कुछस्वरूपका वर्णन कर दिया गया अब विशेष देवोंका स्वरूप वर्णन करना | चाहिये । देवोंके चार निकाय ऊपर कहे गये हैं उनमें प्रथम भवनवासी निकाय है। भवनवासियोंके दश भेद हैं। सूत्रकार उन दश प्रकारके भवनवासियोंकी समान्य विशेष संज्ञाओंका प्रदर्शन करते हैं| भवनवासिनोऽसुरनागविद्युत्सुपर्णाग्निवातस्तनितोदधिद्दीपदिक्कुमाराः॥१०॥
भवनवासी देव, असुरकुमार नागकुमार विद्युत्कुमार सुपर्णकुमार अग्निकुमार वातकुमार स्तनितर कुमार उदाधिकुमार दीपकुमार और दिक्कुमार इसरीतिसे दशप्रकारके हैं।
भवनेषु वसनशीला भवनवासिनः॥१॥ जिन देवोंका स्वभाव भवनों में ही रहनेका हो वे भवनवासी कहे जाते हैं। उक्त चारों निकायोंमें पहिले निकायकी यह सामान्य संज्ञा है।
। असुरादयस्ताहिकल्पाः ॥२॥ असुरकुमार नाग कुमार विद्युत्कुमार आदि दश भेद उन भवनवासियोंके हैं।
सर्वे नामकर्महेतुकाः ॥३॥ नामकर्मके उदयसे असुरकुमार आदि भेदोंकी उत्पत्ति है । अर्थात् असुर नामकर्मके उदयसे असुर-18/२०१५ कुमार, नाग नामकर्मके उदयसे नागकुमार, विद्युत् नामकर्म के उदयसे विद्युत्कुमार, सुपर्ण नाय कर्मके
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