Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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मध्वाब
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२०१७
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|| साथ युद्ध वतलाना सर्वथा असत्य है। भवनवनासी देव, कुमार क्यों कहे जाते हैं ? वार्तिककार इस ६|| विषयका स्पष्टीकरण करते हैं
कौमारवयोविशेषविक्रियादियोगात्कुमाराः ॥७॥ यद्यपि.समस्त देवोंकी अवस्था आयु स्वभाव निश्चित है तथापि उनका विक्रिया करनेका स्वभाव कौमाररूप विशेष अवस्था सरीखा होता है । कुमारोंके ही समान उद्धत उनके वेष.रहते हैं उन्हींके समान का भाषा बोलते हैं । भूषण धारण करना मारना पीटना चलना और सवारी रखना भी उन्हींके समान जा होता है । तथाकुमारोंके समान रागजनित क्रीडाओंमें आसक्त रहते हैं इसरूपसे कुमारों सरीखी चेष्टाके | धारक होने के संबंधसे भवनवासी देवोंको कुमार कहा जाता है । . . . .
प्रत्येकमाभिसंबंधः॥८॥. . सूत्रमें जो कुमार पदका उल्लेख किया गया है उसका असुर नाग आदिप्रत्येकके साथ संबंध है इस लिये असुरकी जगहपर असुरकुमार नागकी जगहपर नागकुमार इत्यादि रूपसे अर्थ समझना चाहिये। III-भवनवासी देवोंके भवन कहां हैं ? वार्तिककार इस विषयका स्पष्टीकरण करते हैं
- अस्याः रत्नप्रभायाः पंकबहुलभागेऽसुरकुमाराणां भवनानि चतुःषष्टिशतसहसाण ॥९॥
रत्नप्रभा भूमिके पंकबहुलभागमें असुरकुमार देवोंके चौसठ लाख भवन हैं। इस जंबूद्वीपसे तिरछी | ओर दक्षिण दिशाके सन्मुख असंख्यात द्वीप समुद्रोंके वाद पंकबहुलभागमें चमर नामका असुर कुमा: 18
रॉका इंद्र रहता है। वहाँपर उसके चौतीस लाख भवन हैं। चौसठ हजार उसके सामानिक देव हैं। तेतीस 800१७ |त्रयस्त्रिंश देव हैं। तीन सभा, सात प्रकारकी सेना, चार लोकपाल, पांच पटरानी एवं चार हजार चौसठ
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