Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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नकी ऊंचाईपर बुध, उनसे तीन योजनकी ऊंचाई पर शुक्र, उनसे तीन योजनकी ऊंचाई पर वृहस्पति, उनसे चार योजनकी ऊंचाई पर मंगल एवं उनसे चार योजनकी ऊंचाई पर शनैश्चर नामक ज्योतिषी देव 9 अध्याय भ्रमण करते हैं। इसप्रकार ज्योतिषी देवोंके परिभ्रमणका आकाशदेश एकसौ दश योजन मोटा और घनोदधि पर्यंत तिरछा असंख्यात द्वीप और समुद्रोंके बराबर है। अर्थात् इस समतल भूमिसे ऊपर ७१० योजन ऊपर चढकर तो ज्योतिषीदेवोंका संचार शुरू होता है और वह क्रमसे १०, ८०, ३, ३. ३, ३, ४, ५, इसप्रकार ११० योजन तक ऊपर चला गया है इसलिये इस मोटाई की अपेक्षा तो ११० । योजनमें ज्योतिषीगण हैं लंबाईमें असंख्याते द्वीप समुद्र पर्यंत फैले हुये हैं। इसी विषयकी पुष्ट । करनेवाली एक गाथा है । वह इस प्रकार है
णवदुत्तरसचसया दससीदिच्चदुतिगं च दुगवदुकं ।
तारारविससिरिक्खा वुइभग्गावगुरुअंगिरारसणी॥१॥ अर्थात्-चित्रा पृथिवीसे सातसौ नब्बे योजनकी ऊंचाई पर तारागण हैं। उनके ऊपर दश योजनकी ऊंचाईपर सूर्य, अस्ती योजनकी ऊंचाई पर चंद्रमा, तीन योजनकी ऊंचाई पर नक्षत्र, तीन योजनकी है ऊंचाईपर बुध, तीन योजनकी ऊंचाईपर शुक्र, तीन योजनकी ऊंचाईपर वृहस्पति, चार योजन प्रमाण , ऊंचे मंगल और चार योजन ही ऊंचे शैनेश्वर ज्योतिषी देव हैं। ___नक्षत्रमंडलमें अभिजित् नामका नक्षत्र सब नक्षत्रोंके मध्यभागमें गमन करनेवाला है । मूलनक्षत्र सबके बाहिर गमन करनेवाला है। भरणी नक्षत्र सबके नीचे और स्वाति सबके ऊपर गमन करनेवाला । है। सूर्योका विशेष वर्णन इसप्रकार है
र गमन करनवाला १०२.
ARRIARIHARA