Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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०० गाषा
ASASALLADARES
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वद्र्व्यं स कालः' अर्थात् जिसके द्वारा क्रियावान् द्रव्य प्रेरित हो, जो उसे परिणमावे वह काल है यह | काल शब्दकी व्युत्पत्ति है । इस कालद्रव्यका निर्णय आगै (पांचवें अध्याय) विस्तृत रीतिसे किया जायगा। तथा
प्रदेशप्रचयाभावादस्तिकायेष्वनुपदेशः॥ ४॥ . प्रदेशोंका जो पिंडरूप परिणाम है उसका नाम काय है जिनके इसप्रकारका काय विद्यमान हो वे | आस्तिकाय कहे जाते हैं । जीव पुद्गल धर्म अधर्म और आकाश इन पांच द्रव्यों में वह काय विद्यमान है इसलिये इन पांचोंको अस्तिकाय कहा गया है। कालद्रव्य एक प्रदेश है उसके प्रदेश किसी भी रूपसे पिंडस्वरूप नहीं परिणत हो सकते इसलिये उसका ग्रहण अस्तिकायोंके भीतर नहीं किया गया है। यदि प्रदेशोंके पिंडरूप परिणामके अभावमें जिसप्रकार काल द्रव्यको अस्तिकाय नहीं माना जाता उस प्रकार यदि उसे अस्ति-विद्यमान द्रव्य पदार्थ भी न माना जायगा तब कालके साथ जो छह द्रव्योंका उल्लेख किया गया है वह मिथ्या कहना होगा। आगममें कालको द्रव्य पदार्थ माना है क्योंकि धर्म अ-| धर्म आदि द्रव्योंका जो स्वरूप कहा गया है उस स्वरूपका काल द्रव्यमें अभाव है और काल द्रव्यका जो स्वरूप कहा गया है उसकी काल द्रव्यमें विद्यमानता है इसतिसे द्रव्यरूपसे जब मुख्यकाल शास्त्रप्रसिद्ध है तब “पंचास्ति कायोंमें कालद्रव्यका उल्लेख न रहनेसे उसका अभाव है" यह जो ऊपर कहा गया था वह बाधित है। (यदि यहांपर ऊपरसे यह शंका की जाय कि. जो एक प्रदेशी हो वह आस्तिकाय नहीं कहा जा सकता कालद्रव्य एकप्रदेशी है इसलिये वह |. १-प्रदेशप्रचयात्मकत्वं हि कायत्वं । पंचास्तिकायसंस्कृत टीका ।
PRESOMOBIOGESBURUKSANSAR
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