Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अध्याय
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हूँ अस्तिकाय नहीं माना गया तब पुद्गलका परमाणु भी आस्तिकाय नहीं कहा जा सकता क्योंके वह ₹ भी एकप्रदेशी है। इसलिये सामान्यरूपसे जो पुद्गलको अस्तिकाय माना गया है वह, अयुक्त है सो
ठीक नहीं। शक्ति और व्यक्ति दोनोंकी अपेक्षा कायपना माना गया है । जो पदार्थ स्वयं पिंडस्वरूप है हो वह तो व्यक्तिकी अपेक्षा काय है और जो पदार्थ स्वयं तो पिंडस्वरूप न हो परन्तु उसमें अन्य पदा.
थोंके संयोगसे पिंडरूप होनेकी शक्ति विद्यमान हो-जो पिंडरूप हो सके वह शक्तिकी अपेक्षा काय है।" 8 यद्यपि पुद्गलका शुद्ध परमाणु स्वयं पिंडस्वरूप नहीं केवल एकप्रदेशी है तथापि उसमें पिंडस्वरूप
परिणमनेकी शक्ति विद्यमान है अर्थात् अन्य परमाणुओंका संबंध होते ही वह तत्काल पिंडस्वरूप परिहूँ णत हो जाता है । कालद्रव्यरूप असंख्यात अणुद्रव्य रत्नोंकी राशिके समान प्रत्येक आकाशके प्रदेश है पर एक एक विद्यमान है। वे स्वयं पिंडस्वरूप नहीं और न उनके भीतर यह शक्ति विद्यमान है कि है किसी भी अवस्थामें पुद्गल परमाणुके समान वे पिंडरूप परिणत हो सकें इसलिये शक्ति और व्यक्ति
दोनोंकी अपेक्षा काल द्रव्य में कायपना न होनेसे वह आस्तिकाय नहीं कहा जासकता । इससीतसे जब एक प्रदेशी भी पुद्गलके परमाणुमें कायपना सिद्ध है तब परमाणुमें कायपना न घटनेसे सामान्यरूपसे पुद्गल अस्तिकाय नहीं कहा जासकता यह जो आक्षेप किया गया था वह निमूले है)॥१४॥
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१-यणाणं रासीमिव ते कालाणू असस्खदबाणि । द्रव्यसग्रह ।
२। एयपदेसोवि अणू णाणाखंधप्पदेसदो होदि । बहुदेसो उवयारा तेण य काओ भणंति सन्त्रण्ड ॥ २६ ॥ अर्थात् एक प्रदेशका धारक भी परमाणु अनेक स्कंधरूप बहुत प्रदेशोंसे बहुमदेशी होता है इसकारण सर्वज्ञ देव उपचारसे शुगल परमाणुको काय कहते हैं । द्रव्यसंग्रह।