Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अध्याय
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का उल्लेख अयुक्त है ? सो ठीक नहीं। प्रकृतिका जो लिंग है उसका उल्लंघन-अन्यलिंग होता, भी दीख भाषा ६ पडता है जैसे कुटी समी और शुंडी शब्द सीलिंग हैं और उनसे अल्प अर्थमें 'र' प्रत्यय करनेपर कुटीरा २०२३ समीरा और शुंडीरा ऐसा स्त्रीलिंग होना चाहिये था परंतु कुटीर समीर और शुंडीर ये पुलिंग ही दीख |
पडते हैं इसरारीतसे जिसप्रकार यहांपर कुटी आदि प्रकृतियोंके लिंगका उल्लंघन है अर्थात् कुटी आदि स्त्रीलिंगांत शब्दोंसे र प्रत्यय करनेपर कुटीर आदि पुल्लिंगांत माने जाते हैं उसी प्रकार यद्यपि ज्योतिष शब्द नपुंसक लिंगांत है उमसे स्वार्थमें 'क' प्रत्यय करनेपर ज्योतिष्क शब्दको भी नपुंसकलिंगांत होना
चाहिये परन्तु यहांपर क प्रत्यय करनेपर नपुंसक लिंगकी जगह पुल्लिंगका परिवर्तन हो गया है इस . लिये प्रकृति के लिंगका अतिक्रमण व्याकरणसिद्ध होनेसे कोई दोष नहीं।
तद्विशेषाः सूर्यादयः ॥४॥ उन ज्योतिषी देवोंके सूर्य चंद्रमा आदि पांच भेद हैं।
पूर्ववचन्निवृत्तिः॥५॥ सूर्य चंद्रमा आदि विशेष संज्ञाओंकी विशिष्ट देवगति नाम कर्मके उदयसे पहिलेकी तरह रचना समझ लेनी चाहिये अर्थात्-सूर्य नामक विशिष्ट नाम कर्मके उदयसे सूर्यकी, उत्पचि होती है । चन्द्र नामके विशिष्ट नामके उदयसे चन्द्रमाकी, ग्रह नामक विशिष्ट नाम कर्मके उदयसे ग्रहकी, नक्षत्र नामक विशिष्ट नाम कर्मके उदयसे नक्षत्र की और तारक नामक विशिष्ट नाम कर्मके उदयसे ताराओंकी 'उत्पचि है।
सूर्याचंद्रमसावित्यानञ् देवताद्वंद्व ॥६॥
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