Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अध्याय
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उदयसे सुपर्णकुमार, अग्नि नामकर्मके उदयसे अग्निकुमार, वात नामकर्मके उदयसे वातकुमार, स्तनित8 नामकर्मके उदयसे स्तनितकुमार, उदधि नामकर्मके उदयसे उदधिकुमार, दीप नाम कर्मके उदयसे द्वीपE] कुमार एवं दिक् नाम कमके उदयसे दिक्कुमार संज्ञा है । शंका
___अस्यति देवैः सहासुरा इति चेन्नावर्णवादात् ॥ ४॥ जो युद्ध में देवोंके ऊपर शस्त्र के अर्थात् शस्त्रोंसे युद्ध करें वे असुर हैं यह असुर शब्दका अर्थ | है। सो ठीक नहीं मिथ्याज्ञानके निमिचसे देवोंके ऊपर यह अवर्णवाद है-वृथा उनके मत्थे कलंक मढना | है क्योंकि
महाप्रभावत्वात् ॥ ५॥ वैरकारणाभावात् ॥६॥ सौधर्म आदि देव महाप्रभाववान हैं उनके प्रभावके माहात्म्यसे निकृष्टबलके घारक दूसरे देव मनमें | ए भी शत्रुता नहीं रख सकते इसलिये सौधर्म आदि देवोंके सामने होनबल वाले असुरोंका उनके साथ युद्ध छ कहना सर्वथा मिथ्या है। तथा
सौधर्म आदि खगोंके देव विशिष्ट नाम कर्मके उदयसे अनुपम वैभवशाली होते हैं और अहंत | भगवानकी पूजा करना तथा सदा उत्तमोत्तम भोग भोगना ही उनका कार्य रहता है इसलिये परसियोंका हरण करना धन मारना आदि कार्यों में प्रवृत्ति न होनेके कारण उनसे जायमान वैर विरोध उनके नहीं हो सकता इसलिय असुरगण सौधर्मादि देवोंके साथ कभी युद्ध नहीं कर सकते । उनका देवोंके . .१-मिथ्याज्ञानी लोग देवोंको युद्ध करनेवाले, मासाहारी प्रादि समझते है परंतु वास्तवमें देव वैसे नहीं होते, देवोंको दोष लगाना लोगोंकी अज्ञानता है।
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