Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
अध्याय
तियंचगति नामकर्मके उदयमे जो जन्म प्राप्त हो उसका नाम नियंग्योनि है अर्थात लियच जन्मका श्री नाम तिर्यग्योनि है। इस तियग्योनिमें जो जीव उत्पन्न हो चे तिर्यग्योनिज अर्थात् तियच कहे जाने हैं। इन तिथंचोंकी उत्कृष्टस्थिति तीन पल्पकी ? । जघन्यस्थिति अंतमुतप्रमाण है तथा मध्यमस्थितिक अनेक भेद है। इस मध्यमस्थिति के प्रतिपादन करनेकेलिए वार्तिककार कहते हैं
तयंचग्निविधा एकत्रियविकलंप्रियांचंद्रियभवात् ॥ ५॥ एकैद्रिय विकलेंद्रिय और पंचेंद्रियके भेदी तिथंच तीन प्रकारके हैं। जिनके केवल एक ही इंद्रिय वे एकद्रिय तिथंच है। दोइंद्रिय तेइंद्रिय चोइंद्रिय ताके तिथंच विकलेंद्रिय कहे जाते है एवं जिनके पांचों इंद्रियां हैं वे पंद्रिय नियंच हैं।
बावशद्वाविशतिदशराप्तत्रिवर्षसहनाणि एकंद्रियाणामुलका स्थितियथासमय प्रीणि विधियानि ॥ ३॥ ___ पृथिवीकायिक जलकायिक तेजस्कायिक वायुकायिक और वनस्पतिकायिक मदमे एफेंद्रियजीव पांच प्रकारके हैं। उनमें पृथिवीकायिक जीवोंके दो भेद हैं एक शुद्धपृथिवीकायिक दुरारा खरथिवी
कायिक । इनमें शुद्धप्रथिवीकायिकोंकी उत्कृष्टस्थिति बारह हजार वर्षकी है और खर (कठोर) पृथिवी| कायिकोंकी बाईस हजार वर्षकी है। वनस्पतिकायिक जीवोंकी दश हजार वर्षकी, जलकायिकोंकी सात | इजार वर्षकी, वायुकायिक जीवोंकी तीन हजार वर्षकी एवं तेजस्कायिक जीवोंकी तीन रातदिनका है।
विकलेंद्रियाणां दादशवी एकाचपंचासदाधिदियानि पण्मासाथ ॥४॥ दोइंद्रिय जीवोंकी उत्कृष्टस्थिति बारह वर्षकी है। तेइंद्रिय जीवोंकी उत्कृष्टस्थिति उनचास रातदिन Fleet का है। तथा चौइंद्रिय जीवोंकी उत्कृष्टस्थिति छह महीनोंकी है।
१२४ ।