Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
RECA
क्या विशेष है ? उसका समाधान यह है कि एक भवसंबंधी स्थितिका नाम भवस्थिति है तथा जलकाय बारा
अध्याव | आदि किसी एक कायमें अनेक भवोंका ग्रहण होना कायस्थिति कही जाती है। जिसतरह
पृथिवीकायिक जलकायिक तेजस्कायिक और वायुकायिक जीवोंकी उत्कृष्ट कायास्थिति असंख्यात लोकप्रमाण है। अर्थात् यदि इन्हीं कायोंमें उपजना हो तो बराबर असंख्यात लोकप्रमाण कालतक उपजना होता रहता है । वनस्पतिकायिक जीवोंकी अनंत कालप्रमाण है जो कि असंख्यात पुद्गल परिवर्तन प्रमाणस्वरूप वा आवलीके असंख्यातभागस्वरूप कही जाती है। दोइंद्रिय तेइंद्रिय चौइंद्रियस्वरूप विकलेंद्रियोंकी असंख्यात हजारवर्षप्रमाण है । पंचेंद्रिय तिथंच और मनुष्योंकी उत्कृष्ट कायस्थिति | पृथक्त्वकोटि पूर्व अधिक तीन पल्यप्रमाण है। इन सबकी जघन्य कायस्थिति अंतर्मुहूर्तप्रमाण है। तथा देव और नारकियोंकी भवस्थिति ही कायस्थिति है।
विशेष-यद्यपि यहांपर यह शंका हो सकती है कि तियचोंका तो यहांपर प्रकरण नहीं था फिर || यहाँ तिर्यंचोंकी स्थितिका उल्लेख क्यों किया गया ? उसका समाधान यह है कि ऊपरके सूत्रकी अनु।
वारीसे संक्षेपमें यहांपर तियचोंकी स्थितिका कथन हो जाता है यदि अन्यत्र कहा जाता तो अधिक
अक्षरोंके उल्लेखसे गौरव होता इसलिये यहांपर लघुतासे तिर्यंचोंकी स्थितिका उल्लेख दोषावह नहीं । | यदि कदाचित यह शंका की जाय कि-द्वीप तो असंख्याते हैं उन सबका वर्णन न कर सूत्रकारने ढाई
द्वीपका ही वर्णन क्यों किया ? इसका समाधान यह है कि सूत्रकार भगवान उमास्वामी आचार्यको मनुष्य लोकके वर्णन करनेकी ही विशेष इच्छा थी इसलिये मनुष्योंके रहनेका स्थान ढाई दीपका ही | | उन्होंने वर्णन करना इष्ट समझा किंतु जहाँपर मनुष्योंके रहनेका स्थान नहीं ऐसे अन्य द्वीपोंका उल्लेख ||६|९९३ ६ करना इष्ट नहीं समझा अतः यहांपर ढाई द्वीपका ही वर्णन किया गया है । शंका
PRESSURESGARHEADMINISABIRBA
P ESASRAESA-KARA
NAS