Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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___ इस मानुषोचर पर्वतकी चारो दिशाओंमें चार भगवान अहंत जिनेंद्र के मंदिर हैं जो कि पचास योजजनके लंबे, पच्चीस योजनके चौडे और साढे सैंतीस योजनके ऊंचे हैं तथा आठ योजन उंचे, चार योजन
अध्याय प्रमाण ही प्रवेश मार्गके धारक दरवाजोंसे शोभायमान हैं और जिनमंदिरोंका जैसा वर्णन होना चाहिये वैसे ही वर्णनीय हैं। पूर्व आदि दिशाओंमें प्रदक्षिणारूप वैडूर्यकूट १ अश्मगर्भकूट २ सौगंधिककूट ३ . रुचककूट : लोहिताक्षकूट ५ अंजनककूट ६ अंजनमूलकूट ७ कनककूट ८ रजतकूट ९ स्फटिककूट १०९ ९ अंककूट ११ प्रवालकूट १२ वज्रकूट १३ और तपनीयकूट १५ ये चौदहकूट हैं इनकी ऊंचाई पांच सौ है
योजन प्रमाण है। चौडाई मूलभागमें पांच सौ योजन, मध्यभागमें तीनसौ पिचहत्तर योजन और उपरिम भागमें ढाईसौ योजन प्रमाण है ।
चौदहौ कूटोंमें चारों दिशाओंमें तीन तीन कूट हैं। पूर्व-उचर दिशामें एक और पूर्व-दक्षिण दिशामें एक कूट है। इन कूटोंमें एक पल्यकी आयुके धारक यशस्वान् आदि सुपर्णकुमारोंके राजा, * निवास करते हैं। उनमें पूर्व दिशाके वैडूर्य कूटमें यशस्वान् हरता है । अश्मगर्भमें यशस्कांत और सौगं- धिकमें यशोधर रहता है। दक्षिण दिशाके रुचक कूटमें नंदन, लोहिताक्षमें नंदोचर और अंजनकमें है अशीनघोष रहता है। पश्चिम दिशाके अजनमूल कूटमें सिद्धार्थ, कनक कूटमें क्रमण और रजतमें मानुष है रहता है । उचरके स्फटिक कूटमें सुदर्शन, अंक कूटमें अमोघ और प्रबाल कूटमें सुपबुद्ध रहता है। पूर्व-उत्तर दिशाके वज्रकूटमें हनुमान और पूर्व-दक्षिण दिशाके तपनीय कूटमें स्वाति नामकासुपर्णकुमार देवोंका स्वामी रहता है।
चारो विदिशाओंमें रत्नकूट १ सर्वरत्नकूट २ वैलंबकूट ३ और प्रभंजनकूट ४ ये चारकूट हैं। उनमें
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