Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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जापा
है, जंघा आदिके भेदसे अनेक प्रकारको है । उनमें बावडी तालाब आदिमें जलकायके जीवों की रंचमात्र चरा भी विराधना न कर जो पृथिवीके 'समान जल पर परीके उठाने और रखनेकी कुशलता रखते हैं वे है
जलचारण नामकी ऋद्धिके धारक समझे जाते हैं। पृथ्वीसे चार अंगुलप्रमाण ऊपर आकाशमें जो महानुभाव बहुत शीघ्रतासे जंघाओंके उठाने और रखनेमें चतुर एवं सैकड़ों योजनकी दूरीपर बहुत शीघ्र- 2 तासे गमन करनेमें प्रवीण हैं वे जंघाचारण नामकी ऋद्धिके धारक हैं इसीप्रकार तंतुवारण पुषवारण पत्रचारण श्रेणिचारण और अग्निशिखा चारण आदि ऋद्धियोंके घारक समझ लेने चाहिये। .
पर्यक (पलोती) आसनसे बैठे बैठे ही वा कायोत्सर्ग मुद्रासे ही पैरों के उठाने रखने के विना ही जो है। मुनिगण आकाशमें निरवच्छिन्न रूपसे गमन करनेवाले हों वे आकाशगामी नामके ऋद्धिधारी हैं।
आणिमा महिमा लघिमा गरिमा प्राप्ति प्राकाम्य ईशित्व वशित्व अप्रतिघात अन्तर्धान और है। Ilकामरूपित्व आदिके भेदसे विक्रियार्द्ध अनेकप्रकारको है उनमें अत्यंत सक्षम परमाणके समान शरीरका || Fail कर लेना अणिमा नामकी विक्रियर्षि है इस अणिमा नाम ऋद्धिका धारक विस-कमलके तंतुके छिद्रों ||
प्रविष्ट हो कर चक्रवर्तीके परिवारकी विभूतिकी भी रचना कर सकता है। मेरुपर्वतसे भी महान शरीरके। करनेकी सामर्थ्यका होना महिमा नामकी ऋद्धि है । पवनसे भी सूक्ष्म शरीरका बना लेना लषिमा नामकी ऋद्धि है । वज्रसे भी अधिक भारी शरीरका बना लेना गरिमा नामकी ऋद्धि है । पृथिवी पर बैठकर अंगुलीके अग्रभागसे मेरुपर्वतकी शिखर और सूर्य चंद्रमा आदिका स्पर्श करने की सामर्थ्य है।
रखना प्राति नामकी ऋद्धि है । जलमें भूमिके समान गमन करना और भूमिमें जलके समान उछलने। II डूबनेकी सामर्थ्यका होना प्राकाम्य नामकी ऋद्धि है। तीन लोककी प्रभुताको रचनेकी सामर्थ्यका होना
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सान्छन्वन्सSEURBछASALA
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