Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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CREATORS
७.बूद्वीपके समान और एक हजार योजन प्रमाण गहरे शलाका प्रतिशलाका महाशलाका और
अध्याय अनवस्थित नामके चार कुंड करने चाहिये ।ये कुंड केवल बुद्धिमें कल्पित कर लेना चाहिये। इनमें | आदिके तीन कुंडोंकी अवस्थित संज्ञा और चौथा अनवस्थित है । इस अनवस्थित नामक चौथे कुंडमें दो सरसोंके डालेनपर जघन्य संख्येय प्रमाण माना जाता है। तथा उसी अनवस्थित कुंडको ठसाठल सरसोंसे भर दिया जाय । उस सरसोंसे भरे हुए कुंडको कोई सामर्थ्यवान देव अपने हाथमें लेकर उनमें से एक एक सरसों जंबूद्धीप आदि द्वीपोंमें और लवण आदि समुद्रोंमें बरावर क्षेपण करता चला जाय, इस रूपसे उस अनवस्था कुंडको रीता कर दे। जिस समय वह अनवस्था कुंड रीता हो जाय उससमय | उसके रीतेपनको प्रगट करनेके लिये अर्थात् एक वार रीता हुआ इसके सूचन करने के लिये एक सरसों
शलाका कुंडमें डाल दे। जहांपर जाकर उस अनवस्था कुंडकी अंतिम सरसों पडे उस द्वीप वा समुद्रकी सूची प्रमाण एक हजार योजन ही गहरे दूसरे अनवस्था कुंडकी कल्पना कर उसे सरसोंसे भरे। फिर पाईले कहे अनुसार उसे ग्रहण कर जिस द्वीप वा समुद्र में सरसों समाप्त हुई हैं उससे आगेके द्वीप और | समुद्रोंमें उनमेंसे एक एक सरसों क्षेपण करता चला जाय, इसरीतिसे उस दूमरे अनवस्था कुंडको भीरीता| करदे एवं उसका रीतापन सूचित करने के लिये एक अन्य सरसों शलाका कुंडमें पटक दे । इसके वाद | जिस द्वीप वा समुद्र में वह दूसरे अनवस्था कुंडकी अंतिम सरसों पडी उसी द्वीप वा समुद्रकी सूचीप्रमाण
१-जम्बुद्वीप प्रमाण एक लाख योजनके लम्बे और उतने ही चौडे तथा एक हजार योजन गहरे उस प्रथम अनवस्था कुण्ड II को बुद्धिद्वारा-कल्पना करके पूर्ण भरा जाय और उस पर फिर सरसोंको शिखा चढाई जाय तो उस पहले अनवस्था कुण्डकी ||esan
समस्त सरसोंका प्रमाण इसमकार होगा
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