Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अध्याय
९७१
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परीतासंख्येय युक्तासंख्येय और असंख्यासंख्येयके भेदसे असंख्येय तीन प्रकार है । इनमें जघन्य परीतासंख्येय उत्कृष्ट परीतासंख्येय और मध्यम परीतासंख्ययके भेदसे परीतासंख्येय तीन प्रकार है IPI इसी प्रकार युक्तासंख्येय और असंख्यासंख्येयके भी तीन तीन भेद समझ लेना चाहिये । अनंतके भी
परीतानंत युक्तानंत और अनंतानंत ये तीन भेद हैं। इनमें परीतानंत, जघन्यपरीतानंत उत्कृष्टपरतिानंत
और मध्यम परीतानंतके भेदसे तीन प्रकार है इसीतरह युक्तानंत और अनंतानंतके भी तीन तीन || भेद समझ लेने चाहिये । उत्कृष्टपरीतासंख्येयका प्रमाण इस प्रकार है॥ जघन्य परीतासरूपेयके जितने भाग हैं उन सबको एक एक कर विरलन-बराबर जुदा जुदा रख || कर मुक्तावली-मोतियोंकी पंक्तिके समान पंक्ति बनावै । हस मुक्तावलीमें एक एक मुक्ताके ऊपर देय
राशिस्वरूप जो (जघन्य) परीतासंख्येयरूप वर्गराशि है उसे स्थापनकर पहिली मुक्तावलीको कुछ भी
गणना न कर जो एक एक मुक्ताके ऊपर जघन्य परीतासंख्यात स्थापित किये थे उन सबका आपसमें का गुणाकर दूसरी मुक्तावली बनानी चाहिये इसरीतिसे जघन्य परीतासंख्येयके गुणन करनेसे जो राशि या निष्पन्न हो वह देय राशि है । एक एक मुक्ताके ऊपर इसप्रकार गुणन की हुई वह राशि उत्कृष्टपरीता॥ संख्येयके प्रमाणसे एक भाग अधिक हो जानेके कारण उत्कृष्टपरीतासंख्येयको लांघकर जघन्य यक्का॥ संख्येय प्रमाण हो जाती है । इस जघन्य युक्तासंख्येयके प्रमाणसे एक भाग घट जानेपर उत्कृष्टपरीता
| संख्येयका प्रमाण है। अजघन्योत्कृष्ट परीतासंख्येय, मध्यमपरीतासंख्येय कहा जाता है। जहांपर आवलीके IPI द्वारा कार्य हो वहांपर जघन्य युक्तासंख्येयका ग्रहण करना चाहिये क्योंकि जघन्य युक्तासंरूपात समयोंके
समूहको आवली कहा गया है अर्थात् जघन्य युक्तासंख्यातका जो प्रमाण है वही प्रमाण आवलीका है।
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