Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अध्याप
तीनबार गुणन करनेपर उत्कृष्ट अनंतानंतका प्रमाण नहीं निकलता इसलिए इस महाराशिम अनंतस्वरूप केवलज्ञान और केवलदर्शनका मिलान करना चाहिये तब उत्कृष्ट अनंतानंतका प्रमाण निक- ३
लता है। इस उत्कृष्ट अनंतानंतमेसे एक घटा देनेपर अजघन्योत्कृष्ट अनंतानंतका प्रमाण होता है। । मार्गणा प्रकरणमें जहाँपर अनंतानंत कहा गया है वहांपर अजघन्योत्कृष्टानंतानंत समझना चाहिये।
___ उपमाप्रमाणमष्टविधं पल्यसागरसूचीप्रतरघनांगुलजगच्छेणीलोकप्रतरलोकभेदात् ॥ ७ ॥ ____ अंत आदि और मध्य रहित अविभागी अद्रिय तथा एक रस एक गंध एक वर्ण और दो स्पर्श
स्वरूप परमाणु है। अनंतानत परमाणुओंके संघातका नाम एक उत्संज्ञासंज्ञा (उत्सन्नासन्ना) है। आठ है उत्संज्ञासंज्ञा एक संज्ञासंज्ञा ( सन्नासन्ना) है आठ संज्ञांसज्ञा एक त्रुटिरेणु है। आठ त्रुटिरेणुओंके मिले है हुए समुदायका नाम त्रसरेणु है। आठ त्रसरेणुओंका समुदाय एक रथरेणु कहा जाता है। आठ रथ
रेणुओंका समुदाय देवकुरु और उत्तरकुरुके मनुष्यके वालका अग्रभाग है । देवकुरु और उचरकुरुके । मनुष्यों के बालके आठ अग्रभागोंका समुदाय रम्यक और इरिवर्षक्षेत्रके मनुष्यों के बालके अग्रभाग
प्रमाण होता है। रम्यक और हरिवर्ष मनुष्योंके वालके आठ अग्रभाग प्रमाण हैरण्यवत और हैमवत क्षेत्रके मनुष्यों के बालका अग्रभाग है। हैरण्यवत और हैमवत मनुष्यों के बालके आठ अग्रभागोंके समुदायकी बराबर भरत ऐरावत और विदेह क्षेत्रके मनुष्योंके वालका अग्रभाग है। भरत ऐरावत और विदेह क्षेत्रके मनुष्योंके आठ बालोंके अग्रभागोंकी बराबर एक लोखका प्रमाण है। आठ लोखोंका समदाय एक यका ( 0) कहा जाता है। आठ यूकाओंका प्रमाण एक यवका मध्यभाग कहा जाता 21 १७१.
१-स सख्यामानका विशेष वर्णन श्रीत्रिलोकसारसे जानना चाहिये।
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