Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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बचाव
दिशाम गंगे और दक्षिण दिशामें सींगवाले हैं। तथा विदिशाओं में क्रमसे शशाके कानवाले, शष्कुली रा०PI पा (पूली) के कानवाले, जिनके कान ही ओढने विछानेके वस्त्र हैं ऐसे एवं लंबे लंबे कानवाले हैं। दिशा...|| ओंके अंतरालों में क्रमसे घोडा सरीखे मुखवाले, सिंहसरीखे मुखवाले, कुचा सरीखे मुखबाले, भैंसा |||
| सरीखे मुखवाले, सूअर सरीखे मुखवाले, बाघ सरीखे मुखवाले, उल्लू सरीखे मुखबाले और बंदर
मरीखे मुखवाले हैं। शिखरी पर्वतके दोनों अतोंमें मेघसरीखे मुखाले और बिजली को मुखबाले हैं। | हिमवान पर्वतके दोनों अंतोंमें मछली के मुखबाले और कालके समान मुखपाले हैं। उवर विजया के | Pl
दोनों अतोंमें हाथी के समान मुखबाले और दर्पणके समान मुखबाले हैं तथा दक्षिग विजया के दोनों || अतोंमें गायके मुखवाले एवं मेषके (मेढ़ा) से मुखवाले हैं। .
जो एक टांगवाले म्लेच्छ हैं के मिट्टीका आहार करते हैं और गुफाओंमें रहते हैं । शेष म्लेच्छ । है। पुष्प और फलोंका आहर करनेवाले और वृक्षोंपर रहने वाले हैं। इस समस्त म्लेच्छोंकी एक पल्पकी
मायु है। ऊपर कहे गये चौवीसौ दीप जलस्वरूप तलभागसे एक योजन प्रमाण ऊंचे हैं। जिसपकार
ऊपर द्वीप और उनमें रहनेवाले म्लेच्छोंका वर्णन किया गया है उसीपकार कालोद समुदमें भी अंतर्द्वीप जा और उनमें म्लेच्छ रहते हैं। ये जो ऊपर कहे गये हैं वे अतीपज म्लेच्छ हैं तथा कर्मभूमिमें उसन होनेवाले म्लेच्छ शक यवन, शवर और पुलिंद आदि हैं ॥३॥
अब सूत्रकार कर्मभूमियां कौन हैं यह प्रतिपादन करनेके लिये सूत्र कहते हैं अथवा सम्पग्दर्शन आदिके भेदसे मोक्षमार्ग तीन प्रकारका कह आये हैं वहांपर यह प्रश्न उठना है कि उस मोक्षमार्गको प्रवृत्ति समस्त क्षेत्रोंमें है अथवा नहीं। उसका समाधान दिया गया है कि कर्मभूमियों में ही उपकी प्रवृत्ति
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