Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
रा०रा० भाषा
18 दोसौ उनचास योजन कुछ अधिक है। तथा पुष्करापद्वीपमें पर्वतोंसे रुद्ध क्षेत्र तीन लाख पचपन. हजार ||
छहसौ चौरासी योजनप्रमाण है । पर्वतोंसे रुद्ध क्षेत्रोंका प्रमाण परिषिकेप्रमाणमें से घटाने पर जो आशिष्ट का || बचा उसमें दोसौ बारहका भाग देने पर जो प्रमाण रहे उतनी पुष्करार्षदीपके भरतकी चौडाई है। . ) ____ जंबूद्वीपके वर्णन करते समय कुलाचल विजयापर्वत और वृतवेदाब्य आदिकी जो ऊंचाई गह
राई कही है वही पुष्कराधके कुलाचल आदिकी समझ लेनी चाहिये। तयाघातकीखंडद्वीपमें जो उनका का दूना विस्तार कह आए हैं वही पुष्करार्धमें है। दो इष्वाकार और दो मेरुओं का जो परिमाण कहा गया है || वैसा ही यहां समझ लेना चाहिये । जंबूद्वीपमें जिसप्रकार जंबूवृक्ष है उसीप्रकार पुष्करद्वीपमें पुरकरवृक्ष
है। इस पुष्करवृक्षके परिवार वृक्षोंका कुल वर्णन जंबूवृक्ष के परिवारवृक्षों के समान समझ लेना चाहिए । Ell पुष्करद्वीपका आधिपति देव इस पुष्करवृक्ष पर रहता है इसलिए ही द्वीपका पुष्कर यह रूढ नाम है। पद|| पुष्कराधे नाम क्यों पडा वार्तिककार इस विषयका स्पष्टीकरण करते हैं
मानुषोत्तरशैलन विभक्तार्घत्वात्पुष्कराधसंज्ञा ॥६॥ __पुष्कर द्रोपके ठीक मध्यभागमें गोलाकार एक मानुषोचर नामका पर्वत है उसने पुष्कर द्वीपको 10 आधा आधा कर दिया है इसलिये पूर्व अर्धभागको यहां पुष्कराध कहा गया है । वह मानुषोत्तर पर्वत सत्रहसौ इकोस योजन ऊंचा है। चारसौ तीस योजन और एक कोश गहरा है। इसकी मूलभागमें || | चौडाई बाईस हजार प्रमाण है । मध्यभागमें सातसौ तेइस योजन प्रमाण है और उपरिम तलपर चारसौ | | चौवीस योजन प्रमाण है । तथा नीचेको मुखकर बैठे हुए सिंहकी आकृतिके समान वा अर्थ योंकी ९३० | राशिके समान यह मानुषोचर पर्वत है।
PAAAAAAABAR
-