Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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अध्याय
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पुष्कराधैं च ॥३४॥ पुष्करदीपके आधे भागमें भी भरतादिक्षेत्र जंबूद्वीपसे दूने हैं। वार्तिककार सूत्रोंके 'च' शब्दका 8/ ११५२ प्रयोजन बतलाते हैं
संख्याभ्यावृत्त्यनुवर्तनार्थश्चशब्दः॥१॥ 'द्विर्धातकीखंडे' इस सूत्रमें 'द्विः' यह संख्याकी अभ्यावृत्ति कह आए हैं। उसकी अनुवृत्तिकेलिए 'पुष्करा च' इस सूत्रमें चशब्दका उल्लेख किया गया है। यदि कदाचित् यहां यह प्रश्न किया जाय कि| यहांपर जंबूद्वीपके भरतक्षेत्र आदिकी द्विरावृत्ति की जाती है कि धातकीखंडके भरत आदिकी ? उसका समाधान यह है कि यहांपर जंबूद्वीपके भरत आदिकी ही दिरावृत्ति की जाती है । शंका
पुष्करार्घसे बिलकल समीप पर्वमें धातकीखंडका ही वर्णन किया गया है इसलिए उसीके भरत आदिकी पुष्करार्धमें दिगुणता ली जा सकती है। जंबूद्वीपका वर्णन व्यवहित-दूर है इसलिए उसके भरत आदिकी दिगुणता नहीं ली जा सकती अतः धातकीखंडके भरत आदिको ही अपेक्षा पुष्कराधमें | भरत आदिकी द्विगुणता न्यायप्राप्त है ? सो ठीक नहीं। विशेषणका संबंध वक्ताकी इच्छाके अनुसार होता है इसलिए यहांपर यही समझ लेना चाहिये कि धातकीखंडद्वीपमें जो हिमवान आदिकी दूनी चौडाई है पुष्करार्धमें भी वही द्विगुण चौडाई है अर्थात् दोनों जगह समानता है किंतु यह बात नहीं कि घातकीखंडके हिमवान आदिकी अपेक्षा पुष्कराधके हिमवान आदिकी दूनी चौडाई है। जो क्षेत्र पर्वत आदिके नाम धातकीखंडद्वीपमें हैं वे ही पुष्करार्धमें समझ लेने चाहिये किंतु यह बात नहीं कि ९३५ घातकीखंडके क्षेत्र आदिके दूसरे दूसरे नाम हों और पुष्कराधके क्षेत्रके दूसरे दूसरे नाम हो इसरीतिसे
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