Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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भाषा-15
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. कुंडलवर द्वीपकी अपेक्षा दूना विस्तारवाला कुंडलवरोद समुद्र है। उसकी अपेक्षा दूना विस्तारवाला शंखवरोद द्वीप है। उससे दूना विस्तारवालाशंखवरोद समुद्र है । शंखवरोद समुद्रसे दुना विस्तारवाला रुचकवरद्वीप है इस रुचकवरद्वीप के ठीक मध्यभागमें चूडौंके समान गोल रुचकवर नामका पर्वत है वह एक हजार योजन जमीनमें गहरा है, चौरासी हजार योजन ऊंचा है मूल मध्य और अग्रभागमें व्यालीस हजार योजन चौडाहै। इस रुचकवर पर्वतके ऊपर पूर्वआदि दिशाओंमें नंद्यावर्त स्वस्तिक श्रीवृक्ष और वर्धमान नामके चार कूट हैं जो कि पांच पांच सौ योजन प्रमाण ऊंचे मूल मध्य और अग्रभागमें एक एक हजार योजन प्रमाण | लंबे चौडे हैं। उनमें पूर्व दिशामें नंद्यावर्त कूट है और उसमें पद्मोचर नामका दिग्गजेंद्र निवास करता| है। दक्षिण दिशामें स्वस्तिक कूट है और उप्तमें सुहस्ती नामका दिग्गजेंद्र रहता है । पश्चिम दिशामें | श्रीवृक्ष नामका कूट है और उसमें नील रहता है एवं उचर दिशामें वर्धमान कूट है और वह अजनगिरि | दिग्गजेंद्रका निवास स्थान है। ये पद्मोचर आदि चारो दिग्गजेंद्र पत्य प्रमाण आयुके धारक हैं।
उसी रुचकवर दीपकी पूर्वदिशामें वैडूर्य । कांचन २ कनक ३ अरिष्ट दिक्वस्तिक ५ नंदन ६ | अंजन ७ और अंजनमूलक ८ ये आठ कूट हैं। इन सब कूटोंका प्रमाण पहिले कहे हुए कूटोंके समान है। इनमें पहिले वैडूर्थकूटमें विजया नामकी दिक्कुमारी निवास करती है । कांचनमें वैजयंती, कनकमें
जयंती, अरिष्टमें अपराजिता, दिक्स्वस्तिक नन्दा, नंदनमें नंदोचरा, अंजनमें आनन्दा और अंजन| मूलकमें नांदी वर्धना नामकी दिक्कुमारी निवास करती है ।ये आठों दिक्कुमारियां भगवान तीर्थकरके। जन्मकालमें भगवानकी माताके समीपमें झाडीको लेकर प्रतिसमय उपस्थित रहती हैं।
१ 'वर्धमाना' यह भी पाठ है।
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