Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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रजतप्रभ ६ सुप्रभ ७ महाप्रभ ८ अंक ९ अंकप्रभ १० मणि ११ मणिप्रभ १२ स्फटिक १३ स्फटिकप्रभ १४ हिमवत् १५ और महेंद्र १६ ये सोलह कूट हैं । इन समस्त कूटोंका कुल प्रमाण मानुषोचर कूटोंके समान है तथा एक एक दिशामें चार चार कूट हैं। उनमें पूर्व दिशामें पहिला कूट वज्र है और उस पर त्रिशिरा नामका नागेंद्र देव निवास करता है। दूसरा वज्रप्रभ कूट है इसका स्वामी पंचशिरानामका नागेंद्र देव है । तीसरा कूट कनक है और उस पर महाशिरा रहता है । चौथे कनकप्रभ कूटमै महाभुज नामका नागेंद्र देव रहता है। दक्षिण दिशाका पहिला कूट रजत है और उसका स्वामी पद्मनामका नागेंद्र देव है । दूसरा रजतप्रभ है और उसमें पद्मोचर देव है । तीसरा सुप्रभ कूट है और उसमें महापद्म नामका नागेंद्र देव रहता है। चौथा महाप्रभ कूट है और उसमें वासुकी नागेंद्र देव निवास करता है । पश्चिम दिशाका प्रथम कूट अंक है उसका निवासी स्थिर हृदय नागेंद्र देव है । दूसरे अंकप्रभ कूट में महाहृदय नागेंद्र देव रहता है । तीसरे माणकूट में श्रीवृक्ष नागेंद्र और चौथे मणिप्रभमें स्वस्तिक नागेंद्र देव रहता है | उत्तरदिशा के प्रथम स्फटिक कूटमें सुंदर नामका नागेंद्र रहता है । स्फटिकप्रभमें विशालाक्ष, हिमवत में पांडर और महेंद्र कूटमें पांडुक नामका नागेंद्र देव रहता है। तथा त्रिशिराको लेकर महेंद्र पर्यंत | ये सोलहो नागेंद्रोंकी आयु एक पल्यकी है। कुंडल नामक पर्वतकी पूर्व और पश्चिम दिशामें एक एक हजार योजन ऊँच, मूल भागमें एक एक हजार योजन ही चौडे, मध्यभागमें साढ़े सात सौ साढ़े सात सौ योजन और ऊपर के भागमें पांचसौ पांचसौ योजन चौडे दो कूट हैं और उनमें कुंडलवर द्वीपका अधिपति निवास करता है । उसी कुंडल पर्वतके ऊपर चारों दिशाओं में चार मंदिर हैं और अंजन पर्वत के जिनालयोंका जैसा वर्णन कर आये हैं वैसा ही इनका वर्णन है ।
अध्याय
३
SAMA