Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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चरा पाषा
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दिक्कुमारी रहती है। ये आठों दिक्कुमारियां भगवान तीर्थकरके जन्मकालमें चमर ग्रहणकर भगवान | की माताकी सेवा करती है
इन कूटोंके सिवाय पूर्व आदि दिशामें और भी चार कूट हैं और उनके विमल नित्यालोक स्वयंप्रभ और नित्योद्योत ये, नाम हैं। पूर्व दिशामें विमल कूट है और उसमें चित्रा नायकी विद्युत्कुमारी || रहती है। दक्षिणदिशामें नित्यालोक कूट है और उसमें कनकचित्रा रहती है। पश्चिमदिशामें स्वयंप्रमा
कूट है और उसमें त्रिशिरा रहती है एवं उत्तरमें नित्योद्योत कूट है और उसमें सूत्रमणि नामकी विद्युत्कु|| मारी निवास करती है । ये विद्युत्कुमारेयां भगवान तीर्थकरके जन्मकालमें आकर जिनमाताके समीपमें | सूर्यके समान प्रकाश करती तिष्ठती हैं।
रुचकवर पर्वतकी विदिशाओंमें भी चार कूट है। वैडूर्य रुचक मणिप्रभ और रुचकोत्तम ये उनके नाम हैं। उनमें पूर्वोत्तर (ईशानकोण) दिशाके वैडूर्य कूटमें रुचका नामकी दिक्कुमारियोंकी महचरिका निवास करती है । पूर्वदक्षिण (आमेय) दिशाके रुचक कूटमें रुचकामा, पश्चिम दक्षिग (नैऋत्य)
दिशाके मणिप्रभ कूटमें रुचकांता और पश्चिम-उचरके रुचकोचम कूटमें रुचकप्रभा नामकी दिक्कुमा-हूँ। Pरियोंकी-महचरिका निवास करती है।
विदिशाओंमें और भी चार कूट हैं और उनके रत्न रत्नप्रभ सर्वरत्न और रत्नोचय ये चार नामा हैं। उनमें से पूर्वोत्तर दिशाके रत्न नामके कूटमें विजया नामक विद्युत्कुमारियोंकी महचरिका रहती है। इ|पूर्वदक्षिण दिशाके रत्नप्रभ कूटमें वैजयंती, पश्चिमदक्षिण दिशाके सर्वरत्नकूटमें जयंती और पश्चिमो-15 || तर दिशाके रलोच्य कूटमें अपराजिता नामकी विद्युत्कुमारियोंकी महत्चरिका रहती है। ये आठो महः | हारिका भगवान तीर्थकरके जन्मकालमें आकर उनका जातिकर्म करती हैं।
RASHASHARABAERSARASHTR AHASRAEER
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