Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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विद्युत्कुमारियोंके ये बारहो कूट एक एक हजार योजन प्रमाण अंचे हैं । मूलभागमें एक हजार । | जन प्रमाण मध्यभागमें साढे सातसे योजन प्रमाण और अग्रभागमें पांचसै योजन प्रमाण चौडे हैं। । वक पर्वतके ऊपर चारों दिशाओं में चार जिनमंदिर हैं। उन पर्वतोंके मुख पूर्व दिशाकी ओर हैं और मंजन पर्वतके जिनालयोंका जो वर्णन कर आए हैं वही वर्णन इन जिनालयोंका है। इसप्रकार ने दूने वेस्तारवाले असंख्याते द्वीप और समुद्र समझ लेने चाहिये ॥३५॥
... यह मानुषोचर पर्वतके वाहिरके क्षेत्र समुद्रोंका वर्णन कर दिया गया । इस मानुषोचर पर्वतसे पहिले होनेवाले और गति नामके नामकर्मकी अपेक्षा कहे जानेवाले जो पहिले मनुष्य कहे गये हैं वे दो प्रकार किसतरह हैं सूत्रकार इस विषयका स्पष्टीकरण करते हैं
आर्या म्लेच्छाश्च ॥३६ ॥ सूत्रार्थ-आर्य और म्लेच्छोंके भेदसे मनुष्य दो प्रकारके हैं।
आर्या द्विविधा ऋद्धिप्राप्ततरविकल्पात॥१॥ . गुण और गुणवानोंसे सेवित हों वे आर्य कहे जाते हैं और ऋद्धिमाप्त एवं अनृद्धि प्राप्तके भेदसे वै आर्य दो प्रकारके हैं। उनमें
अनृद्धिप्राप्तार्याः पंचविधाः क्षेत्रजातिकर्मचारित्रदर्शनभेदात् ॥ २॥ अनृद्धि प्राप्त आयोंके पांच भेद हैं और वे क्षेत्रार्य जात्यार्य कर्मार्य चारित्रार्य और दर्शनार्य ये हैं। काशी कोशल आदि.क्षेत्रोंमें होनेवाले क्षेत्रार्य कहे जाते हैं । इक्ष्वाकु और भोज आदि जातियोंमें होने |९५९ वाले जात्यार्य कहे जाते हैं। कर्मायौँके.सावद्यकार्य .१ अल्पसावद्यकार्य २ और असावद्यकार्य..