Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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|| अठारह योजनप्रमाण शरीरके धारक मत्स्य हैं । कालोदधि समुद्रके नदीमुखमें अठारहं योजनप्रमाण बाद शरीरके धारक मत्स्य हैं और समुद्र के भीतर छब्बीस योजनप्रमाण शरीरके धारक मत्स्य हैं । स्वयंभू.. रमण समुद्रके नदीमुखमें पांचसो योजनके शरीरके धारक मत्स्य हैं और समुद्रके भीतर एक हजार
योजनके शरीरके मत्स्य हैं॥३२॥
क्षेत्र कुलाचल सरोवर और कमल आदिका जो विधान जंबूद्वीपके भीतर कहा है उससे दूना || दूना घातकीखंडमें है. यह बात प्रतिपादन, करनेकेलिए सूत्रकार सूत्र कहते हैं-, ..
द्विर्धातकीखंडे॥३३॥ ___घातकीखंड नामक दूसरे द्वीपमें भरतादि क्षेत्र दो दो हैं। यह धातकीखंड द्वीप लवणसमुद्रको वेढे तू हए है और चार लाख योजन चौडा है। शंका- . . . . . . . . . . . .
द्रव्याभ्यावृत्तौ सुजभाव इति चेन्न कियाध्याहाराद् द्विस्तावानिति यथा ॥१॥ ह जहांपर अभ्यावृत्ति-दो बार आवृति अर्थ रहता है वहींपर सुच् प्रत्यय होता है तथा जहांपर
क्रियाका संबंध रहता है वहींपर सुच् प्रत्यय किया जाता है । यहांपर भरत आदि द्रव्य हैं। व्याकरणमें प्रकृति प्रत्यय लिंग संख्या विशिष्टको द्रव्य कहा जाता है भरतादि शब्दं लिंग संख्याविशिष्ट होनेसे | द्रव्यवाचक शब्द हैं, इन्हीं द्रव्यवाची शब्दों की द्वि शब्दमे अनुवृत्ति है क्रियाका संबंध यहाँपर नहीं इस. लिए यहां सुच् प्रत्ययका विधान नहीं हो सकता ? सो ठीक नहीं । क्योंकि जिसप्रकार विस्तावानयं
१-लवणोदधि समुद्रका विशेष वर्णन हरिवंशपुराणसे समझ लेना चाहिये अत्यन्त विस्तृत होने से यहां हमने उसका उल्लेख नहीं किया है। : ।
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