Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
अध्याय
१२७/8
इस पंक्तिके समान अवस्थित क्षुद्र पाताल एकसौ पचीस १२५ हैं। अन्य भी बहुतसे पाताल विवर वहांपर भाषा 15|| हैं समस्त अंतरालोंके पाताल विवरों की संख्या सात हजार आठसौ अस्सी प्रमाण हैं। .
दिक्षु बेलंधरनागाधिपतिनगराणि चत्वारि ॥७॥ लवण समुद्रकी रत्नवेदिकासे तिरछी ओर वियालीस हजार योजन प्रमाण जानेपर वेलंधर नागाधिपतियोंके नगर हैं जो कि व्यालीस हजार योजन लंबे और उतने ही चौडे हैं । इन नगरोंमें वलंघरनागोंके अधिपति रहते हैं जो कि एक एक पल्यके आयुवाले, दश दश धनुष ऊंचे और हर एक चार चार पट्टदोवयोंसे वेष्टित हैं। तथा इन नगरोंमें वेलंधरनाम जातिके देव भी निवास करते हैं।
समुद्रकी वेलाको धारण करनेवाले नागदेवोंका नाम वेलंधर नाग है। इन वेलंधर नागोंमें वियाIPH लीस हजार नाग लवण समुद्रकी अभ्यंतर वेलाको धारण करते हैं। वहचर हजार वाह्य वेलाको धारण l करते हैं तथा अट्ठाईस हजार नाग कुमार जलके अग्रभागको धारण करते हैं। ये सब मिलकर वेलंधर नागकुमार देव एक लाख वियालीस हजार हैं।
द्वादश योजनसहसायामविष्कभी गौतमद्वीपश्च ॥ ८॥ लवण समुद्रकी रत्नवेदिकाके तिरछी और बारह हजार योजन जाकर बारह योजन लंबा चौडा लवण समुद्रके अधिपति गौतम देवका गौतम द्वीप है। लवण समुद्र की गहराई इसप्रकार है
रत्नवेदिकासे पिचानवे प्रदेश जानेपर लवण समुद्र एक प्रदेश गहरा है । पिचानवे हाथोंकी वरा-६ ९२७ ६ वर जानेपर एक हाथ गहरा है । पिचानवे योजन प्रमाण जानेपर एक योजन प्रमाण गहरा है। पिचा
PRASACS
Sake ANGRECASHEPHEEGANESELECREENER