Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
अाया
वारा भाषा
तीनपल्य, दूसरेमें दोपल्य, तीसरेमें एकपल्य प्रमाण आयु है। चौथेमें एक कोटिपूर्व फिर घटते २ पंचम व कालमें आदिमें १२० वर्ष फिर घटते २ वीस वर्ष, छठेमें आदिमें वीस वर्ष और अंतमें १५वर्षप्रमाण है। इसी
प्रकार शरीरकी अवगाहना प्रथम कालकी आदिमें तीन कोस अंतमें दो कोस, द्वितीय कालकी आदि- | में दो कोस, अंतमें एक कोस, तीसरे कालकी आदिमें एक कोस अंतमें ५०० धनुष प्रमाण है चतुर्थेकाल | की आदिमे ५०० धनुष अंतमें ७ हाथ है, पंचम कालकी आदिमें ७ हाथ अंतमें दो हाथ है छठे काल- 12
l की आदिमें दो हाथ अंतमें एक हाथ प्रमाण शरीरकी अवगाहना है (इप्ससे विपरीत वृद्धिक्रम उत्स- | || पिणीमें समझना चाहिये ) उसके बाद क्रमसे हानि होनेपर दुःषमा काल इक्कीस हजार वर्षका है। उसके 5 वाद क्रमसे हानि होनेपर अतिदुःषमा काल भी इकोस हजार वर्षका है। यह कथन अवसर्पिणी कालकी | || अपेक्षा किया गया है । इसीको विपरीत क्रमसे माननेपर उत्सर्पिणी कालका भी वर्णन समझ लेना
चाहिये ॥२७॥ ह भरत और ऐरावत क्षेत्रोंकी तो परिस्थिति वतला दीगई अब वाकीके क्षेत्रोंकी परिस्थिति प्रतिपाAll दन करनेके लिये सूत्रकार सूत्र कहते हैं
ताभ्यामपरा भृमयोऽवस्थिताः॥२८॥ ____ मस्त और ऐरावतके सिवाय अन्य पांच पृथिवियां ज्योंकी त्यों नित्य हैं अर्थात् इन क्षेत्रोंमें वृद्धि ६] हास नहीं होता है।
भरत और ऐरावत इन दो क्षेत्रोंको छोडकर अन्य जो भी हैमवत, हरि, विदेह, रम्यक, हैरण्यवत क्षेत्र है वे सर्वदा अवस्थित रहते हैं उनमें उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी कालका चक्र नहीं फिरता ॥२८॥
BRECENTARVARDHAKARORER
GALASARGOESEPLAC KHEALLPEPER