Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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चिंतित भोग पाते हैं, विकलत्रय भी वहां नहीं होते हैं। स्वामी सेवक भाव भी नहीं है । तिथंच भी वहांके , इपरविरोधरहित भद्रपरिणामी होते हैं । जलचर जीव नहीं होते हैं । तियंच मीठे तृग सेवन करते हैं। 9 अपार । धूपशीतकी बाधा भी नहीं होती। मणिमय वहांको पृथ्वी होती है । भोगभूमिका विशेष वर्णन व्याख्या 1 प्रज्ञविसे जान लेना चाहिये)॥ ३०॥ विदेह क्षेत्रोंमें रहनेवाले मनुष्योंकी स्थिति क्या है ? इस वातका खुलासा सूत्रकार करते हैं
विदेहेषु संख्येयकालाः॥३१॥ सूत्रार्थ-पांच मेरु संबंधी पांचों विदेह क्षेत्रोंमें संख्यात वर्षकी आयुवाले मनुष्य होते हैं।
विदेह क्षेत्रोंमें जितने मनुष्य रहते हैं उन सबकी आयु संख्यात वर्ष प्रमाण है । वहांपर सुश्म दुःषम ५ काल सदा अवस्थित रहता है। मनुष्य पांच सौ धनुष ऊंचे होते हैं । प्रतिदिन भोजन करते हैं उनकी E, उत्कृष्ट स्थिति कोटि पूर्व प्रमाण है और जघन्यस्थिति अंतर्मुहूर्त की है ॥ १३॥ प्रकारांतरसे सूत्रकार भरतक्षेत्रकी चौडाई वतलाते हैं
भरतस्य विष्कंभोजंबूद्वीपस्य नवतिशतभागः॥३२॥ ____एक लाख योजन विस्तारवाले जंवूद्वीपके एकनौ नव्यतां १२० भाग भरतक्षेत्रका विस्तार है। अर्थात् जंबूद्धीपके १९० समान टुकडा करने पर एक टुकडाप्रमाण भरतक्षेत्र है। शंका. भरतक्षेत्रका विस्तार भरतःपर्दिशतीत्यादि सूत्रसे पहिले कह दिया गया है फिर यह भातक्षेत्र के विस्तारका कथन क्यों ? उत्तर
पुनर्भरतविष्कंभवचन प्रकारांतरप्रतिपत्त्यर्थ॥१॥
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