Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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रा०रा०
यापा
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करने पर सामानिक शब्दकी सिद्धि हुई है । सामानिकाश्र परिषद 'सामानिकपरिषदः" यह सामा निकपरिषत् शब्दका विग्रह है। शंका
सामानिक और परिषत शब्द में अल्पाक्षरवाले परिषत् शब्दका पूर्वनिपात न कर सामानिक शब्दका क्यों किया गया ? उत्तर- पारिषद देवोंकी अपेक्षा सामानिक देव पूज्य हैं अर्थात् ऐश्वर्प के सिवाय श्री आदिक देवियोंके समान ही सामानिक देवकी विभूतियां हैं पारिषद देवों की वैसी विभूति नहीं इसलिए पारिषद शब्दकी अपेक्षा सामानिक शब्दका प्रथम उल्लेख किया गया है । उपर्युक्त श्री | आदिक देवियां सामानिक और पारिषद देवों के साथ निवास करती हैं सामानिक और पारिषद देवों के रहने के कमलोंका निरूपण कर दिया गया है। उन कमलोंके मध्य भागोंमे जो प्रासाद हैं उनमें ये रहते है ॥ १९ ॥
जिन नदियोंके द्वारा क्षेत्रों का विभाग हुआ है उन नदियों का सूत्रकार उल्लेख करते हैंगंगासिंधूरोहिद्रोहितास्याहरिहरिकांता सीतासीतोदानारीनरकांतासुवर्णरूप्यकूलारक्तारक्तोदाः सरितस्तन्मध्यगाः ॥ २० ॥
उक्त सातो क्षेत्रों में बहनेवाली गंगा सिंधू रोहित रोहितास्या हरित् हरिकांता सीता सीतोदा नारी नरकांता सुवर्णकूला रूप्यकूला रक्ता और रक्तोदा ये चौदह नदियां हैं जो कि उक्त छ सरोवरोंसे निकलीं हुई हैं।
गंगा आदि पदों का आपस में इतरेतर योग द्वंद्वसमास है । अर्थात् गंगा च सिंधू च रोहिच रोहि| तारया च हरिच्च हरिकांता च सीतोदा च नारी च नरकांता च सुवर्णकूला च रूप्यकूला च रक्ता चरक्तोदा
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अध्याय ३