Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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चाहिये इतना विशेष है कि इसकी धारा कुछ अधिक दोसौ योजनप्रमाण गिरती है । रोहित नदीके 1 कुंडके.प्रासादमें रोहित नामकी देवी रहती है। यह रोहित नामकी महानदी पूर्वसमुद्रमें जाकर मिला है।
उदीच्यतोरणद्वारनिर्गता हरिकांता ॥५॥ ___महापद्म सरोवरके उचरकी ओरके द्वारसे हरिकांता नामक महानदीको उदय हुआ है। यह भी है रोहितनदीके समान महाहिमावन्पर्वतके तलभागमें पहुंच कर उत्तरकी ओर बहती है कुछ अधिक टू दोसौ योजन प्रमाण इसकी धारा पडती है । दो योजनप्रमाण मोटी और पचास योजनप्रमाण चौडी है है
तथा अपने मध्यभागमें श्रीदेवी के प्रासादके समान प्रासादसे शोभित, दो कोश दश योजन ऊंचे, बचीस • योजनप्रमाण लंबे चौडे दीपसे मनोहर चालीस योजनके गहरे एवं दोसौ चालीस योजेन लंबे चौडे
वज्रमयी तलके धारक कुंडमें जाकर गिरी है । पश्चात उस कुंडके उचरकी ओरके तोरणद्वारसे निकली है। प्रवाहके स्थानपर आधे योजनप्रमाण गहरी पचीस योजन चौडी विकृतवान वृत्तवेदाब्य पर्वतकी 5
आधे योजनके अंतरसे परिक्रमा देकर पश्चिमकी ओर मुख कर बहती है । तथा मुखमें पांच योजन हूँ गहरी और ढाई योजन चौडी है और पश्चिम समुद्रमें जाकर मिली है । हरिकांता महानदीके कुंडके हूँ प्रासादमें हरिकांता नामकी देवीका निवासस्थान है।
तिगिछदप्रभवा दक्षिणद्वारनिर्गता हरित् ॥६॥ -- निषध पर्वतके ऊपर तिगिंछ सरोवरके दक्षिणकी ओरके तोरणदारसे हरित् नामकी महानदीका उदय हुआ है। वह सात हजार चारसौ इक्कीस योजन और एक योजनके उन्नीस भागोंमें एक भाग प्रमाण पर्वतके तलभागमें पूर्वदिशाकी ओर जाकर गिरी है इत्यादि समस्त वर्णन हरिकांता महानदीके
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