Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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ॐ अध्याय
स०स०
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. पुंडरीकहूदप्रभवापाच्यतोरणद्वारनिर्गता सुवर्णकूला ॥ १२ ॥ शिखरी पर्वतके ऊपर पुंडरीक सरोवरके दक्षिणकी ओरके तोरण बारसे सुवर्णकूला महानदीका जन्म हुआ है। इसकी कुल रचना रोहितास्य नदीके समान समझ लेनी चाहिये । विशेष इतना है कि- * सुवर्णकूला नदीके कुंडके प्रासादमें सुवर्णकूला नामकी देवी रहती है और यह माल्यवान वृत्तवेदाब्यकी प्रदक्षिणा कर पूर्व समुद्रमें जाकर प्रविष्ट हुई है।
पूर्वतोरणद्वारनिर्गता रक्ता ॥१३॥ उसी शिखरी पर्वतके ऊपर पुंडरीक सरोवरके पूर्वकी ओरके तोरण द्वारसे रक्ता महानदीका जन्म हुआ है। इसकी भी कुल रचना गंगा महानदीके समान समझ लेनी चाहिये । विशेष इतना है किरक्ता नदीके कुंडके प्रासादमें रक्ता देवीका निवास स्थान है।
प्रतीच्यद्धारनिर्गता रक्तोदा ॥१४॥ उसी पुंडरीक सरोवरके पश्चिमकी ओरके तोरण द्वारसे रक्तोदा महानदीका जन्म हुआ है। इसकी कुल रचना सिंधू नदीके समान समझ लेनी चाहिये। विशेष इतना है कि-रक्तोदा नदीके कुंडके प्रासाहूँ दमें रक्तोदा नामकी देवीका निवास स्थान है।
उपर्युक्त चौदह नदियों में गंगा सिंधू रक्ता और रक्तोदा ये चार नदियां पर्वतका उपरि तलभाग तथा जहां पर इनकी धार पडती है वह जगह इन दो जगहोंको छोड कर सर्वत्र सर्पके समान कुटिल है रूपसे गमन करनेवाली हैं और वाकीकी नदियां मेरु पर्वत और नाभिगिरिके प्रदेशोंसे. अन्यत्र सब
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