Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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इसप्रकार यह भरतक्षेत्रका विस्तार कह दिया गया अब अन्य क्षेत्रोंके विस्तारका ज्ञान करनेके । लिये सूत्रकार सूत्र कहते हैं
तद्विगुणद्विगुणविस्तारा वर्षधरवर्षा विदेहांताः॥२५॥ विदेहक्षेत्र तकके पर्वत और क्षेत्र भरतक्षेत्रकी अपेक्षा दूने दूने विस्तारवाले हैं । ततो द्विगुणो. द्विगुणो विस्तारो येषां ते इमे तद्विगुणद्विगुणविस्ताराः' यह यहांपर विग्रह है।
वर्षधरशब्दस्य पूर्वनिपात आनुपूर्व्यप्रतिपत्त्यर्थः ॥१॥ जिसमें थोडे अक्षर होते हैं उसका पूर्वनिपात होता है ऐसा व्याकरणका सिद्धांत है। वर्षधर और 2 क वर्ष दोनों शब्दोंमें वर्ष अल्पाक्षर है इसलिये इस सूत्रों वर्षधरवर्षाः' इस जगहपर वर्ष शब्दका ही पहिले
निपात होना न्यायप्राप्त है तथापि आनुपूर्वी की प्रतिपत्ति के लिये अर्थात् पहले पर्वत उसके वाद क्षेत्र
इसी रूपसे अनुपूर्वी क्रम है इसलिये पहले वर्षधर शब्दका ही उल्लेख किया गया है अन्यथा वर्षघराच ६ वर्षाश्च इमप्रकार द्वंद्व समासके करनेपर वर्ष शब्दका ही अल्पाक्षर होनेसे पूर्वनिपात होगा। यदि यहां 3 हूँ पर यह शंका हो कि
___आनुपूर्वी क्रमकी प्रतिपत्ति के लिये पूर्वप्रयोग होता है ऐसा व्याकरण शास्त्रका तो कोई वचन है है * नहीं फिर यहां उस आनुपूर्वी क्रमकी प्रतिपत्ति के लिये वर्षधर शब्दका पूर्वप्रयोग मानना मनगढंत है ? " ॐ सो ठीक नहीं । क्योंकि यद्यपि 'आनुपूर्वी क्रमकी प्रतिपचिके लिये पूर्वप्रयोग होता है। यह सूत्रद्वारा ६ (कण्ठोक्त ) कहा हुआ वचन व्याकरण शास्त्रमें नहीं है तथापि 'लक्षणहेतोः क्रियायाः" इस व्याकरण , ५ सूत्रमें जो हेतु' शब्दमें अल्पाच् होते हुये भी लक्षण शब्दका उससे पूर्व प्रयोग किया गया है उससे यह
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