Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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.... उत्तरा दक्षिणतुल्याः ॥२६॥ ___ विदेहक्षेत्रसे उत्तरके तीन पर्वत और तीन क्षेत्र दक्षिणके पर्वतों और क्षेत्रों के बराबर विस्तार वाले हैं।
उत्तरके ऐरावतक्षेत्रको आदि लेकर नीलपर्वत पर्यंत के क्षेत्र और पर्वत दक्षिणकी ओरके भरतादि क्षेत्र और पर्वतोंके समान समझ लेने चाहिये । अर्थात् निषधपर्वतके समान विस्तारवाला नीलपर्वत है। ६ हरिपर्वतके समान विस्तारवाला रम्यकक्षेत्र है। महाहिमवान पर्वतके समान विस्तारवाला रुक्मी पर्वत |
है। हैमवतक्षेत्र के समान विस्तारवाला हैरण्यवतक्षेत्र है । हिमवान पर्वतके समान विस्तारवाला शिखरी है पर्वत है । तथा भरतक्षेत्रके समान विस्तारवाला ऐरावतक्षेत्र है ॥ २६॥
. भरत आदि क्षेत्रोंमें रहनेवाले मनुष्यों में अनुभव आदि समान रूपसे है कि कुछ विशेष है ? इस शंकाके परिहारकेलिए सूत्रकार सूत्र कहते हैं
. भरतैरावतयोडिहासौ षदसमयाभ्यामुत्सर्पिण्यवसर्पिणीभ्यां ॥२७॥ ६ उत्सर्पिणी और अवसर्पिणीरूप छह कालोंसे भरत और ऐरावतक्षेत्रों के मनुष्यों की आयु काय ₹ भोगोपभोग संपदा वीर्य बुद्धयादिकका बढना और घटना होता है अर्थात् उत्सर्पिणीके छह कालोंमें हूँ वृद्धि और अवसर्पिणीके छह कालोमे दिनोंदिन हानि होती चली जाती है।
यह बढना घटना भरत और ऐरावतक्षेत्रोंका है । यदि यहाँपर यह शंका हो कि-भरत और है ऐरावतक्षेत्र तो अवस्थित हैं-कभी उनका बढना घटना नहीं हो सकता फिर यहां उनके वृद्धि ह्रासका ॐ उल्लेख कैसा ? वार्तिककार इसका उत्तर देते हैं
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