Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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रा० बापा
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. उदीच्यतोरणद्वारनिर्गता रोहितास्या ॥३॥
शाजवाब पद्म सरोवरके उत्तरकी ओरके तोरणदारसे रोहितास्या नदीका उदय हुआ है । वह दोसौ छिह॥ चर योजन और एक योजनके उन्नीस भागोंमें छह भागप्रमाण हिमवान पर्वतके ऊपर उचरकी और
| गई है इसकी भी गंगा नदीके समान विशाल धारा गिरती है अर्घत्रयोदश (साढे बारह) योजनप्रमाण |चौडी है। एक योजन मोटी है । तथा इसी आकारसे एकसौ बीस योजनके लंबे चौडे, बीस योजनके ।
गहरे वज्रमयी तलके धारक जिसका मध्यभाग श्रीदेवी के प्रासाद के समान लंबे चौडे प्रासादसे शोभाय- 2 || मान है एवं दो कोश और दश योजन ऊंचे, सोलह योजन लंबे चौडे द्वीपसे अलंकृत है ऐसे कुंडमें जा ६ कर गिरी है। इस कुंडके उत्तरकी ओरके तोरणद्वारसे निकल कर उत्प्रेरकी और शब्दज्ञान वृत्तवेदान्य ही
प्रदक्षिणा कर आधे योजनके अंतरसे मुडकर पश्चिमकी ओर गई है। जहांपर उत्पन्न हई है वहांपर यह ॥ एक कोश गहरी साढे बारह योजन चौडी और जहाँपर पश्चिम लवण समुद्रमें जाकर मिला है वहांपर मुखमें ढाई योजन गहरी और एकसौ पचीस योजन चौडी लपण समुद्र में जाकर प्रविष्ट हुई है। इस
रोहितास्सा नदीके कुंडके प्रासादमें रोहितास्या नामकी देवी रहती है । इसप्रकार गंगा सिंधू और | रोहितास्या ये तीन नदियां हिमवान् कुलाचलसे निकली हैं।
महापद्महदप्रभवाऽपाच्यतोरणद्वारेण निर्गता रोहित ॥४॥ ... महाहिमवान् पर्वतके ऊपर महापद्म सरोवरके दक्षिणकी ओरके तोरणदारसे रोहितनदीका उदय का हुआ है वह सोलहसौ पांच योजन और एक योजनके उन्नीस भागोंमें पांच भागप्रमाण दक्षिणकी ओर
जाकर कुंडमें गिरी है इत्यादि रूपसे रोहितनदीका कुल वर्णन रोहितास्या नदीके समान समझ लेना
कलाकार
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