Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
View full book text
________________
PASSSSSS
| अध्याय
छत्चीस और चारों विदिशाओं में एकसौ बचीस इस प्रकार सब मिल कर दोसौ अडसठ विले हैं । चौथे। वनक पाथडेमें एकसौ बचीस तो चारों दिशाओंमें और एकप्तौ अठाईस चारों विदिशाओंमें इस प्रकार || सब मिल कर दोसौ साठ बिले हैं। पांचवें घाट पाथडे में एकसौ अट्ठाइस चारों दिशाओं में एकपो चौबीस चारों विदिशाओंमें इस प्रकार सब मिला कर दोसौ बावन हैं। छठे संघाट पाथडेमें सब विले मिल कर दोसौ चवालीस हैं उनमें एकसौ चौवीस तो.चारों दिशाओं में हैं और एकसौ बीत चारों विदिशाओं में हैं। सातवें जिह्व पाथडेमें चारों दिशाओंमें एकसौ बीस और चारों विदिशाओंमें एकसौ | सोलह इस प्रकार सब मिल कर दोसौ छत्तीस हैं। आठौं उजिाह्वे रु पाथडेमें दोपौ अट्ठाईस विले हैं। उनमें एकसौ सोलह तो दिशाओं में हैं और एकसौ बारह विदिशाओंमें हैं। नवले आलोल पाथडे, चारों दिशाओंमें एकसौ बारह और चारों विदिशाओंमें एकसौ आठ इस प्रकार सामिल का दोती। बीस विले हैं । दशवे लोलुक पाथडे में सब विले दोसौ बारह हैं उनमें एकसौ आठ तो चारों दिशाओं में हैं
और एकसौ चार चारों विदिशाओंमें हैं। ग्यारहवें स्तनलोलु : पाथडे चारों दिशाओं में एकौ चार विदिशाओं में सौ इस प्रकार दोसौ चार है। इस प्रकार ये श्रेणिवद्ध विले दो हजार छइसौ चौरासी होते है। तथा इन ग्यारह पाथों में एक एक इंद्रकविला है इसलिए ग्यारह और दो हजार छसौ चौरासीको । आपसमें जोडने पर इंद्रक और श्रेणिवद्ध विलों की संख्या शर्करापमा भूमिमें दो इजार छ इसौ पवान है और उसमें पुष्पप्रकीर्णक विले चौबीस लाख सतानवे हजार तीनप्तौ पांच हैं इस प्रकार सब मिल कर शर्कराप्रभा भूमिमें कुल विले पच्चीस लाख हैं।
तीसरे नरकमें तप्त आदि नौ प्रस्तार कह आये हैं उनमें पहिले तप्त पाथडेमें एकसो छयानवे विले
GREENSORRE-HEIGGEEGANESCREENSECRETURE
-