Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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भाषा
|| विद्युत्पभसे पूर्व बीचमें सुप्रभा नामका शाल्मली वृक्ष है । सुदर्शन जंबूवृक्षका जो कार वर्णन कर | आए हैं वही वर्णन इस शाल्मलिवृक्षका समझ लेना चाहिये। सुपभा नामक शाल्मलिवृक्षकी उतर | शाखामें अहंत भगवानका मंदिर है । पूर्व, दक्षिण और पश्चिमकी शाखाओं पर मनोज्ञ मनोज्ञ प्रासाद
हैं और उनमें गरुत्मान् वेणुदेव नामक देव निवास करता है । अनावृत देवके परिवारका जैसा वर्णन Pil कर आए हैं उसीप्रकार इस देवके परिवारका भी वर्णन समझ लेना चाहिये।
निषधाचल पर्वतसे उत्तर तिर्यक् एक हजार योजनके बाद सीतोदा महा नदीके दोनों पसवाडोंमें चित्र-5 S कूट और विचित्रकूट नामक दो पर्वत हैं । दो यमक पर्वतोंका जो स्वरूप वर्णन कर आए हैं वही स्वरूप
वर्णन इन दोनों पर्वतोंका भी है। निषध देवकुरु सूर्य सुलस और विद्युत्लभ ये पांच इस देवकुरुमें हूद ॥ हैं और इन पांचों हूदों का वर्णन उत्तरकुरु के पांचो द्दोंके वर्णनके समान समझ लेना चाहिये। उचरकुरुमें जिसप्रकार सौ कांचन पर्वत कह आए हैं उसी प्रकार देवकुरुमें भी सौ कांचन पर्वत समझ लेना चाहिये।
सीता महानदीसे उत्तर विदेह और दक्षिण विदेह भेदसे पूर्व विदेह क्षेत्रके दो विभाग होगये हैं। उनमें वा उचरभाग चार वक्षार पर्वत और तीन विभंग नदियोंसे विभक्त होकर आठ भाग रूप होगया है और 5 उन आठो भागोंका आठ चक्रवर्ती उपभोग करते हैं। जिन चार वक्षार पर्वतोंसे उत्तर विदेहका विभाग
का हुआ है वे उनके चित्रकूट पनकूट नीलकूट और एकशिल ये नाम हैं और जिन विभंग नदियोंसे उसका I विभाग हुआ है वे वक्षार पर्वतोंके मध्यभागमें रहनेवाली ग्राहावती १ दावती और पंकावती ३ येर
तीन नामवाली हैं। ये चारो ही वक्षार पर्वत अपनी दक्षिण और उत्तर कोटियों से सीता नदी और
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