Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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राडिया
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ॐ गुडिया वीरवोइट्टी) का नाम है। उसमें इंद्रका गोप इत्यादि स्वरूप अर्थ नहीं घटता तथापि उसे ।। ६ रूढिसे इंद्रगोप कह दिया जाता है उसीप्रकार यद्यपि हिमवान् पर्वतसे हिमका संबंध नहीं तथापि उसे, . । रूढिवलसे हिमवान् कहना बाधित नहीं । प्रश्न--हिमवान् पर्वत कहाँपर है ? उंचर-''.
- हेमवतहरिवर्षयोर्विभागकरः॥४॥ ... हैमवतक्षेत्रसे उचर.और हरिवर्षक्षेत्रसे दक्षिणकी ओर उन दोनों क्षेत्रों को आपसमें जुसाई करने वाला महाहिमवानपर्वत है । यह महाहिमवान्पर्वत दोसौ योजन ऊंचा है। पचास योजनकी गहरी नीचे
जमीनमें इसकी नींव है। चार हजार दोसो दश योजन और एक योजनके उन्नीस भागोंमें दश भाग ४ प्रमाण चौडाई है । इसकी पूर्व पश्चिमकी ओरकी भुजाओंमें प्रत्येक भुजा नौ हजार दोसौ छिहचर
योजन और एक योजनके उन्नीस भागोंमें नौ भाग आधा भाग और कुछ अधिक है। इसकी उतरकी ओरकी प्रत्यंचा त्रेपन इजार नौसौ इकतीस योजन और एक योजनके उन्नीस भागोंमें छह भाग कुछ
अधिक है। उस प्रत्यंचाका धनुषपृष्ठ सचावन हजार दोसौ तिरानवे योजन और एक योजनके उन्नीसह है भागों में दशभाग कुछ अधिक है। इस महाहिमवान्पर्वतके ऊपर सिद्धायतन १ महाहिमवानं २ हैमवत
३ रोहित ४ हरि ५ हरिकांता हरिवर्ष ७ वैडूर्य ८ ये आठ कूट हैं। इन आठों लोंका प्रमाण क्षदः हिमवान्के कूटोंके प्रमाण ही समझ लेना चाहिये। भगवान जिनेंद्र के मंदिर और प्रासादोंका वर्णन भी
क्षुद्र-हिमवानपर्वतके जिनमंदिर और प्रासादोंके समान समझ लेना चाहिये। इन कूलों के प्रासादोंमें भी * अपने अपने कूटोंके नामोंके धारक देवगण और देवियां निवास करती हैं। प्रश्न-निषध पर्वतको निषषeet . संज्ञा कैसे है ? उत्तर- .
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