Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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यह पद्म नामका सरोवर पूर्वपश्चिम एक हजार योजन लंबा है । उत्तरदक्षिण पांचसौ योजन प्रमाण विस्तीर्ण है, वज्रमयी तलका धारक है, भांति भांति की मणियां सुवर्ण और चांदीसे चित्र विचित्र तटोंसे शोभित है, सफेद और उत्तम सुवर्णमयी पीतवर्ण के बुर्जों से अलंकृत, चार तोरणद्वारोंसे विभाजित, आधे योजन ऊंची, पांचसौ योजन चौडी और पद्म सरोवर के समान ही लंबी ऐसी पद्मत्ररवेदिका से वेष्टित है, चारो दिशाओं में रहनेवाले चार वनखंडों से व्याप्त है, पवित्र स्फटिकमणिके सपान स्वच्छ, गंभीर और अक्षय जलका धारक है, अनेक प्रकारके कमलपुष्पोंसे शोभायमान है तथा शरद ऋतु चंद्रमा और ताराओंसे विभूषित जो पर्यंत भाग उससे परिवेष्टित, विचित्र मेघपटल का धारक और नीचे भाग प्राप्त आकाशके खंडके समान है ॥ १५ ॥
यह पद्म नामका सरोवर गहरा कितना है ? सूत्रकार इस विषयका उल्लेख करते हैं
दशयोजनावगाहः ॥ १६॥
सूत्रार्थ- पद्म नामक सरोवर की गहराई दश योजनप्रमाण है ।
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अवगाह शब्दका अर्थ प्रवेश वा निम्नता है। 'दश योजनानि अवगाहोऽस्य स दशयोजनावगाहः" यह दशयोजनावगाह शब्दकी व्युत्पत्ति है । पद्म' नामका सरोवर दश योजनप्रमाण अवगाहका घारक है ॥ १६ ॥
पद्मसरोवर के कमलका प्रमाण सूत्रकार कहते हैं
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तन्मध्ये योजनं पुष्करं ॥ १७ ॥
सूत्रार्थ - उस पद्मसरोवर के भीतर एक योजनका लंबा चौडा कमल है ।
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अभ्याग